मध्यप्रदेश के सोयाबीन किसानों ने MSP बढ़ाने की मांग तेज की
MP News: मध्यप्रदेश के सोयाबीन उगाने वाले किसान एक बार फिर समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदी को लेकर नाराज हैं। उनका कहना है कि मंडियों में सोयाबीन के भाव बहुत कम मिल रहे हैं। सरकार ने एक क्विंटल सोयाबीन की अनुमानित लागत 3552 रुपये मानकर 50 प्रतिशत लाभ जोड़ते हुए MSP 5328 रुपये तय किया है। हालांकि किसानों के अनुसार उत्पादन की वास्तविक लागत 3400 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल तक है।
प्रदेश में एक एकड़ से औसतन 5 क्विंटल सोयाबीन उत्पादन होता है। मंडियों में औसत भाव 4000 रुपये प्रति क्विंटल होने पर किसान को 20 हजार रुपये मिलते हैं। वहीं हार्वेस्टर से कटाई करने पर लागत 17 हजार और मजदूरों से कटाई करने पर 20 हजार रुपये खर्च आ जाता है। इसका मतलब यह है कि किसान को या तो लाभ नहीं मिलेगा या लाभ 1 से 3 हजार रुपये तक सीमित रहेगा। इसी कारण किसान इस वर्ष 6000 रुपये प्रति क्विंटल तक का भाव तय करने की मांग कर रहे हैं।
किसानों का कहना है कि खर्च का हिसाब इस प्रकार है: तीन बार जुताई, बीज, बुवाई, खाद, खरपतवार नाशक, इल्लीमार स्प्रे, हार्वेस्टर कटाई, मजदूरों से कटाई और परिवहन। इन खर्चों का कुल जोड़ वास्तविक उत्पादन लागत के करीब आता है, जो सरकार के अनुमानित 3552 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक है।
पांच साल में MSP में 35 प्रतिशत तक वृद्धि हुई है। वर्ष 2021-22 में MSP 3950 रुपये था। 2022-23 में यह 4300 रुपये, 2023-24 में 4600 रुपये, 2024-25 में 4892 रुपये और 2025-26 में 5328 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच गया। लेकिन किसानों का कहना है कि लागत के अनुपात में यह बढ़ोतरी पर्याप्त नहीं है।
मध्यप्रदेश में पिछले साल 2024-25 में पहली बार MSP पर सोयाबीन उपार्जन की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इस निर्णय से पहले 10 से 12 दिन तक आंदोलन हुआ था। इससे पहले तिलहन संघ वर्षों तक मार्केट रेट पर सोयाबीन की खरीदी करता था।
इस बार भी किसान MSP पर खरीदी की प्रक्रिया शुरू करने की मांग कर रहे हैं और सरकार से तत्काल कदम उठाने की अपेक्षा कर रहे हैं। उनका मानना है कि उचित समर्थन मूल्य न मिलने पर उनकी मेहनत और लागत का पूरा लाभ नहीं मिलेगा। किसान चाहते हैं कि MSP उत्पादन लागत के अनुरूप तय किया जाए ताकि कृषि लाभकारी रहे और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत बनी रहे।
सोयाबीन किसानों की मांग पर नजर रखने वाले कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि लागत और MSP में संतुलन सुनिश्चित करना आवश्यक है। नहीं तो किसानों में असंतोष बढ़ेगा और उत्पादन पर भी असर पड़ेगा।