पंचायत और नगर पालिका की नाकामी, मवेशियों से बढ़ रहे हादसे
Damoh News: शहर और जिलेभर की सड़कों पर आवारा मवेशियों का कब्जा बढ़ता जा रहा है, जिससे वाहन चालकों और पैदल यात्रियों की जान को खतरा उत्पन्न हो रहा है। हाल के पंद्रह दिनों में मवेशियों से जुड़े हादसों में एक बाइक सवार की मौत और कई लोग घायल हुए हैं। बावजूद इसके स्थानीय प्रशासन और पंचायतें ठोस कदम नहीं उठा रहीं, जबकि जिले की गोशालाओं में दर्ज गोवंश के नाम पर बड़े पैमाने पर अनुदान दिया जा रहा है।
अधिकारियों और स्थानीय लोगों के अनुसार, शहर से लेकर ग्रामीण मार्गों तक मवेशी खुलेआम सड़कों पर घूमते नजर आते हैं। दमोह-कटनी मार्ग, आनू-बांदकपुर मार्ग, दमोह-जबलपुर मार्ग, दमोह-सागर और दमोह-छतरपुर मार्ग सहित कई प्रमुख मार्गों पर शाम के समय वाहन चलाना खतरनाक हो गया है। कुछ स्थानों पर मवेशी पेट्रोल पंपों और चौक के पास भी खड़े मिलते हैं, जिससे ट्रैफिक बाधित होता है और हादसों का जोखिम बढ़ जाता है।
घटना क्रम और प्रभाव
पंद्रह दिनों में घटी घटनाओं में 13 सितंबर को आनू मार्ग पर जबलपुर नाका निवासी एक निजी स्कूल संचालक की बाइक गाय से टकराने से उसकी मौत हुई। इससे एक दिन पहले इसी मार्ग पर मवेशी आने से एक ऑटो पलट गया था, जिसमें कई लोग घायल हुए थे। इसी दौरान अलग-अलग रास्तों पर और भी दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें कुल मिलाकर दस लोग दुर्घटनाओं में घायल हुए और एक व्यक्ति की जान गई। उल्लेखनीय है कि इस अवधि में लगभग पंद्रह गोवंश भी मर गए।
गोशालाओं का अनुदान और जमीन पर स्थिति
जिले में कुल 54 गोशालाएं पंजीकृत हैं और कागजों में 5,283 गोवंश दर्ज हैं। शासन से हर गोवंश के लिए रोजाना चारा-भूसा और दाने के रूप में प्रति-गो 40 रुपए का अनुदान मिल रहा है। इसके अनुसार पंजीकृत गिनती के लिए प्रतिदिन लगभग 2,11,320 रुपए तथा प्रतिमाह करीब 63,39,600 रुपए अनुदान दिया जा रहा है, जो सालाना सात करोड़ से अधिक बनता है। फिर भी सड़कों पर मवेशियों का आवागमन और उनसे होने वाले हादसे रोकने में विफलता दिखाई दे रही है।
किसकी जिम्मेदारी और क्या हो रहा है
नगरीय क्षेत्रों में सड़कों से गोवंश हटाकर गोशालाओं में पहुंचाने की जिम्मेदारी नगर पालिका की मानी जाती है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह कर्तव्य ग्राम पंचायतों का है। बावजूद इसके कार्रवाई या तो औपचारिक हो कर रह जाती है या पंचायत स्तर पर प्रभावी कदम नहीं उठाए जाते। अधिकारियों का कहना है कि निर्देश दिए जा चुके हैं और जहां-जहां शिकायतें आती हैं वहां कार्रवाई कराई जाती है, पर जमीन पर समस्या जस की तस बनी हुई है।
स्थानीय खामियां और प्रश्न
स्थानीय लोग एवं मार्ग पर आने-जाने वाले यात्रियों का कहना है कि गोशालाएं अक्सर खाली दिखाई देती हैं, फिर भी मवेशी सड़कों पर क्यों छोड़े जा रहे हैं, इसका ठोस जवाब नहीं मिलता। कहीं-कहीं लगता है कि गोशालाओं का रख-रखाव, अनुदान का उपयोग और गोवंश की सही पंजीकरण प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है। साथ ही जिम्मेदार विभागों के बीच समन्वय की कमी व निगरानी की अनियमितता का भी आरोप हैं।
असर और सुझाव
मवेशियों के कारण रात या सांझ के समय सड़कों पर आवाजाही जोखिम भरी हो जाती है। अतः तत्काल रूप से सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है सक्रिय पकड़, गोशालाओं में समुचित रख-रखाव, पंचायतों तथा नगर पालिका द्वारा नियमित निगरानी व दंडात्मक कार्रवाई और सार्वजनिक जागरूकता अभियान। इसके साथ ही पंजीकृत अनुदान की वास्तविक स्थिति का ऑडिट कराकर सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दिये जाने वाले संसाधन गोवंश के कल्याण व सुरक्षित आवास पर ही खर्च हो रहे हैं।
नागरिकों से आग्रह है कि वे सहयोग करें अवैध रूप से मवेशी छोड़ने की सूचना तुरंत संबंधित विभाग को दें, और सड़क किनारे खुले चारे-पानी न दें। सामुदायिक स्तर पर चौकियां बनाकर शाम के पेट्रोलिंग का सुझाव दिया जा रहा है।
आख़िर में, जब तक प्रशासनिक व्यवस्था और स्थानीय सहभागिता मजबूत नहीं होगी, तब तक सड़कों पर मवेशियों के कारण हुए हादसे और जन-धारा में संकट जारी रहने की आशंका बनी रहेगी।