खेल मैदान और संसाधन के अभाव में निजी स्कूल में करानी पड़ी नेटबॉल स्पर्धा, 154 खिलाड़ी बने गवाह
Burhanpur News: जिले में खेल सुविधाओं की कमी एक बार फिर सामने आई है। जिला स्तरीय शालेय खेल प्रतियोगिता के तहत मंगलवार को नेटबॉल मुकाबले आयोजित किए गए, लेकिन शहर में उपयुक्त मैदान न होने के कारण इन्हें खड़कोद के एक निजी स्कूल में कराना पड़ा। इस स्पर्धा में केवल चार निजी स्कूलों की टीमें ही शामिल हो पाईं और कुल 154 खिलाड़ियों ने भाग लिया।
दोपहर 12 से शाम 4 बजे तक अंडर-14, अंडर-17 और अंडर-19 आयु वर्ग में बालक-बालिका टीमों के मैच खेले गए। बालक वर्ग की तीनों श्रेणियों में तथा बालिका वर्ग के 17 और 19 वर्ष समूह में खड़कोद के एवीपी स्कूल की टीमें विजेता बनीं। अंडर-14 बालिका वर्ग में मात्र अर्वाचीन इंडिया स्कूल की टीम पहुँची, जिसे विजेता घोषित कर दिया गया। प्रतिभागियों में अर्वाचीन इंडिया स्कूल, बुरहानपुर पब्लिक स्कूल, न्यू सरस्वती स्कूल सारोला और एवीपी ग्लोबल स्कूल की टीमें शामिल रहीं।
जिला क्रीड़ा अधिकारी और अन्य खेल शिक्षकों ने खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन किया। चयनित खिलाड़ियों को इस महीने खरगोन में होने वाली संभागीय प्रतियोगिता में जिले का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिलेगा।
हालांकि स्पर्धा सफल रही, लेकिन इससे जिले की खेल व्यवस्थाओं की खामियाँ उजागर हुईं। सरकारी स्कूलों में खेल शिक्षकों की भारी कमी है। फिलहाल करीब 10 अतिथि शिक्षक ही अलग-अलग स्कूलों में काम देख रहे हैं, परंतु बच्चों की संख्या के हिसाब से यह बिल्कुल पर्याप्त नहीं है। ये शिक्षक भी केवल उन्हीं खेलों में मार्गदर्शन दे पा रहे हैं, जिनमें वे दक्ष हैं। इसके विपरीत निजी स्कूलों में लगभग हर खेल के लिए अलग शिक्षक उपलब्ध हैं, इसलिए वहाँ से अधिक प्रतिभाशाली खिलाड़ी निकल रहे हैं।
शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में खेल मैदानों की स्थिति भी दयनीय है। एकमात्र स्टेडियम बदहाल पड़ा है और कई स्कूलों के मैदानों पर अब दुकानें तक बना दी गई हैं। जिन खेलों में संसाधनों की आवश्यकता होती है—जैसे क्रिकेट, टेबल टेनिस या बैडमिंटन—उनमें सरकारी स्कूलों के बच्चे पीछे रह जाते हैं। हालांकि खो-खो जैसे पारंपरिक खेलों में दापोरा के सरकारी स्कूल के खिलाड़ियों ने अपनी पहचान बनाई है और यहाँ निजी स्कूलों के खिलाड़ी भी टिक नहीं पाते।
जिले के 38 हायर सेकंडरी स्कूलों में से केवल दो में ही स्थायी खेल शिक्षक हैं। इनमें से एक ग्रामीण क्षेत्र और दूसरा शहर के स्कूल में पदस्थ है। शेष 36 स्कूल बिना खेल शिक्षक के ही चल रहे हैं। यही वजह है कि अधिकांश प्रतियोगिताओं में निजी स्कूलों का दबदबा दिखाई देता है।
खेल प्रेमियों का कहना है कि जब तक संसाधन और योग्य प्रशिक्षक उपलब्ध नहीं होंगे, सरकारी स्कूलों के खिलाड़ी अपनी असली क्षमता नहीं दिखा पाएंगे। मंगलवार को हुई नेटबॉल स्पर्धा भी इसी हकीकत का आईना है।