Damoh News: सीएसआर: पिछले 5 साल में खर्च हुए 1922 करोड़, लेकिन 5 जिलों को मिला आधा हिस्सा, पिछड़े जिलों को मिला 'न्यूनतम' समर्थन
Damoh News: राज्य में कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) के तहत खर्च की गई राशि पिछले 5 वर्षों में 170 प्रतिशत की दर से बढ़कर 656 करोड़ रुपए सालाना तक पहुंच गई है। लेकिन इस बढ़े हुए सीएसआर फंड का फायदा पूरे प्रदेश को समान रूप से नहीं मिला। रायसेन, सिंगरौली और इंदौर जैसे औद्योगिक जिले जहां निवेश और इकाइयां अधिक हैं, उन्होंने पिछले वर्षों में सीएसआर का सबसे बड़ा हिस्सा लिया।
जबकि 8 आकांक्षी (पिछड़े) जिलों को नाम मात्र की हिस्सेदारी मिल पाई है। मध्यप्रदेश के जिन जिलों को नीति आयोग ने 'आकांक्षी जिला' घोषित किया है यानी जो स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी सुविधा, पोषण और आजीविका के सूचकांकों में पिछड़े हैं वहां सीएसआर की पहुंच बहुत कम है।
वित्तीय वर्ष 2018-19 में राज्य में कुल
सीएसआर खर्च 243.55 करोड़ रुपए था, जो 2022-23 तक बढ़कर 656.42 करोड़ रुपए हो गया। यानी पांच वर्षों में करीब 1922.84 करोड़ रुपए खर्च हुए। लेकिन इस रकम को विवरण असा रहा। वर्ष 2022-23 में अकेले रायसेन में 115.51 करोड़, सिंगरौली में 98.28 करोड़ और इंदौर में 55.09 करोड़ रुपए खर्च किए गए। भोपाल और उज्जैन में यह राशि क्रमशः 42.82 करोड़ और 37.16 करोड़ रही। इन पांच जिलों ने मिलकर राज्य के कुल सीएसआर फंड का आधा हिस्सा अकेले ले लिया।
शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल पर सबसे ज्यादा खर्च: सीएसआर फंड का सबसे बड़ा हिस्सा शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और स्वच्छता जैसे बुनियादी सेक्टरों में खर्च किया गया। पांच साल में इन क्षेत्रों में कुल 471.87 करोड़ खर्च हुए, जो राज्य के कुल सीएसआर खर्च (656.42 करोड़) का 71.8% है। यह फंड स्कूलों के निर्माण, छात्रवृत्तियों, अस्पतालों के उपकरण, हेल्पतानिटक जल-प्रदाय, स्वच्छता और सड़कों जैसे कार्यों में लगाया गया। लेकिन विडंबना है कि जिन जिलों में इन सेवाओं की सबसे अधिक कमी है, वहां कॉरपोरेट निवेश सबसे कम दिखा।
औद्योगिक जिलों को ज्यादा राशि इसलिए मिलीः यह फंड सरकारी योजनाओं की तरह ऊपर से तय होकर जिलों में नहीं बंटता। कंपनियों को स्वतंत्रता होती है कि वे किन जिलों या परियोजनाओं पर खर्च करें। कंपनियां प्रायः व्यावसायिक हित से जुड़े इलाकों को चुनती हैं। बता दें कि नीति आयोग ने जनवरी 2018 में देश में जो 112 आकांक्षी जिले चिह्नित किए, उनमें मध्यप्रदेश के 8 जिले शामिल हैं।
आकांक्षी जिलों को 20 से 30 करोड़ रु. ही मिले
आकांक्षी जिलों की स्थिति बहुत सीमित रही। सिंगरौली को छोड़ दें तो बाकी जिलों जैसे खंडवा, दमोह, मंडला, डिंडोरी और शहडोल में पिछले पांच वर्षों में सीएसआर खर्च औसतन 20 से 30 करोड़ के बीच ही रहा। खंडवा में 37.24 करोड़, दमोह में 28.34, राजगढ़ में 17.89, गुना में 16.94, छतरपुर में 16.7, बड़वानी में 15.59 और विदिशा में 5.96 करोड़ का खर्च हुआ। जबकि इन जिलों में शिक्षा,स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं की सबसे अधिक जरूरत है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सीएसआर की नीति वास्तव में राज्य के पिछड़े और जरूरतमंद इलाकों तक पहुंच पा रही है?