रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर सॉल्यूशन का नशा, बच्चों की सेहत पर बढ़ता खतरनाक साया
Damoh News: इन दिनों शहर के रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड इलाके में छोटे बच्चे सॉल्यूशन सूंघने के नशे में लिप्त पाए जा रहे हैं। उनके पास सॉल्यूशन की छोटी-छोटी ट्यूबें और भीगा हुआ रुमाल रहता है, जिसमें सॉल्यूशन लगाकर वह उसे नाक के पास रख कर सूंघते हैं। यह अकेले का खेल नहीं रहा बच्चे अक्सर समूहों में घूमते हैं और एक साथ नशा करते हैं। कुछ बच्चों की उम्र केवल 10-14 साल के बीच बताई जाती है।
स्थानीय निरीक्षण में यह भी सामने आया कि कई बच्चे अपने लिए पैसे भीख मांगकर या छोटे-मोटे चोरी के काम कर इकठ्ठा करते हैं ताकि सस्ती ट्यूबें खरीद सकें। कुछ बच्चे कबाड़ उठा कर बेचने या दुकानों से छोटा सामान लेकर नकदी जुटाते हैं। सोलूशन की एक सामान्य ट्यूब सिर्फ कुछ पैसे की होती है, पर यह छोटे बच्चों के लिये दिनभर की खुराक पूरी कर देती है। ऐसे में परिवार से कटे या टूटे घरों के बच्चे रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड के पास ही रहने लगे हैं और कई बार वे वहीँ सोते-जागते मिल जाते हैं।
चिकित्सकों की चेतावनी चिंताजनक है। विशेषज्ञ बताते हैं कि जूता-चप्पल सीने या पंचर जोड़ने में प्रयुक्त यह सॉल्यूशन मुख्यतः हाइड्रोकार्बन और अन्य जहरीले रसायनों से भरा होता है। बार-बार सूंघने से फेफड़ों पर स्थायी असर होता है, किडनी कमजोर हो जाती है और दीर्घकालिक रूप से कैंसर, टीबी और मानसिक रोगों का जोखिम बहुत बढ़ जाता है। कई मामलों में बच्चे बेहोशी की हालत में गिर जाते हैं और मदद न मिलने पर उनकी स्थिति और बिगड़ सकती है। लगातार सेवन से कुछ वर्षों में ही बच्चे बेहद कमजोर होकर असमय मृत्यु तक के शिकार हो जाते हैं।
बाल संरक्षण और महिला-बाल विकास विभाग समय-समय पर मुहिम चला चुके हैं और छापेमारी भी हुई है, पर समस्या जड़ में बनी हुई दिखती है। अभियान के दौरान कुछ बच्चे गायब हो जाते हैं या पलायन कर दूसरे स्थानों पर चले जाते हैं, जिससे स्थायी समाधान नहीं मिल पाता। अधिकारियों का कहना है कि यह एक व्यवस्थित तथा लगातार प्रयास मांगती समस्या है केवल एक-दो छापेमारियों से निपटना संभव नहीं।
स्थानीय डॉक्टरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की राय में हमें तुरंत बहुस्तरीय कदम उठाने होंगे पहले तो स्टेशन और बस स्टैंड पर नियमित निगरानी व बचाव दल की व्यवस्था, दुकानों पर सॉल्यूशन की खरीद पर नियंत्रण और विक्रेताओं की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। साथ ही सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए अस्थायी आश्रय, भोजन और शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि वे भीख और चोरी से दूर रहें। स्कूलों, स्थानीय एनजीओ और पुलिस के समन्वय से बचाव, पुनर्वास और पुनःसमेकन के कार्यक्रम भी चलाने होंगे।
माता-पिता और समुदाय की भी भूमिका अहम है। परिवार टूटने या आर्थिक तंगी में पड़ने वाले बच्चों पर नजर रखी जानी चाहिए तथा उन्हें मानसिक समर्थन और प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी दी जानी चाहिए। यदि समय पर इस प्रवृत्ति पर काबू न पाया गया तो आने वाले वर्षों में यह समस्या बड़कर गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य संकट बन सकती है। इसलिए स्थानीय प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और समाज को मिलकर त्वरित और ठोस कदम उठाने होंगे ताकि छोटे बच्चे सॉल्यूशन के नशे से बचें और उन्हें सुरक्षित बचपन मिल सके।