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धार जिले में किसान लगा रहे मक्का

 

Dhaar News: कभी कपास की बंपर पैदावार के लिए पहचाने जाने वाले निमाड़ क्षेत्र में अब किसानों का रुझान मक्का की ओर बढ़ गया है। नर्मदा पट्टी से लेकर मान डेम के केचमेंट एरिया तक पहले कपास का उत्पादन ज्यादा होता था। अब वहां मक्का के ढेर मंडियों में नजर आ रहे हैं। कपास में इल्ली का प्रकोप, उत्पादन खर्च में बढ़ोतरी, मजदूरों की कमी, बेमौसम बारिश और भारतीय कपास निगम (सीसीआई) की खरीदी पर निर्भरता जैसे कारणों से किसान परेशान हो गए। इसके उलट मक्का की खेती में खर्च कम आता है।

मशीनों से कटाई हो जाती है। भंडारण की जरूरत नहीं होती। सीधे मंडी में बिक्री हो जाती है। 2024-25 के रबी सीजन मेंमक्का की बंपर पैदावार हुई है। कृषि विभाग के अनुसार 2025-26 के खरीफ सीजन में मक्का का रकबा 8950 हेक्टेयर से बढ़कर 9800 हेक्टेयर हो गया है। स्वीट कॉर्न प्रजाति का रकबा भी 345 हेक्टेयर से बढ़कर 650 हेक्टेयर हो गया है। पपीता की खेती भी बढ़ी है। पिछले वर्ष 40 हेक्टेयर में पपीता था।

अब यह 120 हेक्टेयर हो गया है। कपास का रकबा घटा है। पिछले वर्ष यह 21380 हेक्टेयर था। अब 20250 हेक्टेयर रह गया है। किसानों ने इस बार 77% फसलें गर्मी में ही लगा दी है। इनमें मक्का, कपास और पपीता प्रमुख है। नर्मदा किनारे और मान डेम में पानी पर्याप्त है। इसलिए किसान 15 मई के बाद खेतों में बोवनी शुरू कर देते हैं।कॉटन व्यवसायी हेमंत खटोड़ ने बताया किसान कपास से ऊब चुके हैं।

इसमें लगातार स्प्रे और खाद डालना पड़ता है। पकने पर मजदूर नहीं मिलते। इसलिए किसान मक्का की ओर जा रहे हैं। जिनिंग फैक्ट्रियों में अब मक्का की भी खरीदी हो रही है। मक्का से इथेनॉल भी बनता है। इसलिए इसकी मांग ज्यादा है।

हार्वेस्टर से हो जाती है कटाई

क्षेत्र में इस बार 8 लाख क्विंटल से ज्यादा मक्का का उत्पादन हुआ है। यह अपने आप में रिकॉर्ड है। ग्राम देवला के किसान देवदास पाटीदार ने बताया कपास में एक बीघा से दो से तीन क्विंटल उत्पादन होता है। खर्च भी ज्यादा होता है। खरीफ मक्का में 10 से 15 क्विंटल और रबी में 20 से 30 क्विंटल प्रति बीघा उत्पादन होता है। कटाई हार्वेस्टर से हो जाती है। जो कचरा निकलता है, वह खेत में ही खाद बन जाता है। इसलिए मक्का के कई फायदे हैं।

सोयाबीन के भाव भी बहुत कम मिल रहे
सोयाबीन की खेती में भी गिरावट आई है। पिछले वर्ष 7210 हेक्टेयर में बोवनी हुई थी। अब यह घटकर 7150 हेक्टेयर रह गई है। किसानों को सोयाबीन के अच्छे भाव नहीं मिल रहे हैं। कृषि विभाग के एसडीओ जीएलसोलंकी ने बताया मक्का की मांग बाजार में ज्यादा है। यह कई खाद्य उत्पादों में काम आता है। लागत भी कम आती है। इसलिए किसान मक्का ओर की ओर आकर्षित हो रहे हैं। पपीता की खेती में भी रुचि बढ़ी है।

मक्का की मांग बढ़ी

कॉटन व्यवसायी हेमंत खटोड़ ने बताया किसान कपास से ऊब चुके हैं। इसमें लगातार स्प्रे और खाद डालना पड़ता है। पकने पर मजदूर नहीं मिलते। इसलिए किसान मक्का की ओर जा रहे हैं। जिनिंग फैक्ट्रियों में अब मक्का की भी खरीदी हो रही है। मक्का से इथेनॉल भी बनता है। इसलिए इसकी मांग ज्यादा है।