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CBI raids : अवैध सिम कार्ड की हो रही थी बिक्री, सीबीआई ने फर्जीवाड़े का किया खुलासा 

जब कोई ग्राहक सिम कार्ड लेने जाता था, तो पाइंट-आफ-सेल आपरेटर ई-केवाईसी करता था और सिम जारी करता था। जालसाज आपरेटर ग्राहक से झूठ कहते थे कि उनका ई-केवाईसी फेल हो गया है और उन्हें फिर से कोशिश करनी चाहिए।
अधिकारियों ने बताया कि पहली बार जेनरेट हुआ सिम ग्राहक को दे दिया जाता था, जबकि दूसरा सिम, यानी 'घोस्ट सिम', साइबर अपराधियों को बेच दिया जाता था।
 

मोबाइल सिम को अवैध तरीके से बेचने के मामले में सीबीआई ने बड़ी कार्रवाई की है। जहां पर अवैध सिम बेचने के मामले में मोबाइल कंपनी एयरटेल के अधिकारी भी शामिल थे। सीबीआई ने असम से एयरटेल के अधिकारी सहित तीन लोगों को पकड़ लिया और उनसे पूछताछ की जा रही है। अवैध तरीके से बेचे जा रहे इन सिम का प्रयोग अवैध गतिविधियों  में प्रयोग किया जा रहा था। 

सीबीआइ ने असम के कछार में पांच ठिकानों पर छापे मारे और टीएसएम देबाशीष डोले, बिचौलिया माहिम उद्दीन बरभुइया और असीम पुरकायस्थ को गिरफ्तार किया। एयरटेल की तरफ से इस मामले में प्रतिक्रिया नहीं मिली है। डिजिटल अरेस्ट के बढ़ते मामलों पर नकेल कसने के लिए एजेंसी ने इस साल मई में छापे मारे थे, जिसमें 39 प्वाइंट आफ सेल्स (पीओएस) आपरेटर पकड़े गए थे। इन पर भारतीयों को अपने जाल में फंसाने के लिए दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के साइबर अपराधियों को 1100 से अधिक घोस्ट सिम कार्ड बेचने के आरोप हैं।

छानबीन के दौरान सीबीआइ को पता चला कि डोले ने बिचौलिया बरभुइया और पुरकायस्थ के साथ मिलकर अवैध तरीके से सिम कार्ड जारी किए। ये सिम कार्ड उन लोगों के नाम पर और उनकी जानकारी के बगैर जारी किए गए, जिन्हें आधिकारिक तौर पर पहले से सिम कार्ड जारी हुए थे। 

एक ग्राहक के दो सिम कर देते थे जारी 

जब कोई ग्राहक सिम कार्ड लेने जाता था, तो पाइंट-आफ-सेल आपरेटर ई-केवाईसी करता था और सिम जारी करता था। जालसाज आपरेटर ग्राहक से झूठ कहते थे कि उनका ई-केवाईसी फेल हो गया है और उन्हें फिर से कोशिश करनी चाहिए।

अधिकारियों ने बताया कि पहली बार जेनरेट हुआ सिम ग्राहक को दे दिया जाता था, जबकि दूसरा सिम, यानी 'घोस्ट सिम', साइबर अपराधियों को बेच दिया जाता था। असली ग्राहक को इस बात की बिल्कुल जानकारी नहीं होने पाती थी कि उसके नाम पर बना हुआ एक सिम कार्ड स्कैमर इस्तेमाल कर रहे हैं।

इन घोस्ट सिम कार्ड का इस्तेमाल न केवल पीड़ितों को धोखा देने के लिए किया जाता था, बल्कि पैसे लेने के लिए 'म्यूल बैंक अकाउंट' खोलने में भी होता था। बाद में पता लगने से या मनी ट्रेल का खुलासा होने से बचने के लिए इन खातों को बंद कर दिया जाता था।