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सरसों की खेती में बढ़िया उत्पादन लेने के लिए सही समय पर बजाई और इन उन्नत किस्मो का चुनाव करें

 

देश भर में सरसों की खेती को लेकर किसानों के अंदर रूझान कम होता हुआ नजर आ रहा है क्योंकि पिछले दो-तीन सालों के अंदर सरसों की खेती में मार्गोजा नामक खतरनाक रोग आने के कारण सरसों की खेती लगभग चौपट होती हुई नजर आ रही है!

किसानों का कहना है कि नहरी पानी कम होने के कारण गेहूं का भी उत्पादन अच्छा नहीं निकलता ऐसे में किसान दिन प्रतिदिन यह सोचने में लगा रहता है कि सरसों की अगर बढ़िया किस्म का चुनाव किया जाए तो पानी की बचत के साथ-साथ अच्छी पैदावार ली जा सकती है!

कानपुर: किसानों को जानकर अति प्रसन्नता होगी कि चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में सबसे अधिक पैदावार और सबसे ऊचे मोस्चर वाली किस्म तैयार की है


आपको बता दें कि सरसों की इस वैरायटी के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ-साथ अधिक तापमान सहन करने मैं भी सक्षम है इसी वजह से इस किस्म का प्रोडक्शन भी अच्छा रहता है कृषि विशेषज्ञों ने किस्म का नाम, सुरेखा (के एम आर-16-2) के नाम से विकसित की है यह देश में पहले एक ऐसी किस्म है जिसके अंदर तेल मात्रा लगभग 41.4 प्रतिशत आंकी गई है!

सरसों की यह वैरायटी ज्यादा तापमान में भी है कामयाब 


आपको बता दें कि यह सरसों कि वैरायटी सितंबर और अक्टूबर के बीच में पढ़ने वाले 37 से 36 डिग्री तापमान मैं भी सक्षम है सरसों की और वैरायटी के मुकाबले इतने तापमान में भी यह वैरायटी अपनी ऑसतन उपज मैं प्रभावित नहीं होती
और ना ही गर्मी के कारण फसल मुरझाकर खत्म नहीं होती

कृषि विशेषज्ञो से बात के दौरान पता चला है कि सुरेखा वैरायटी कि यह सरसों लगभग 135 दिनों के अंदर  पक कर तैयार हो जाती है इस वैरायटी की औसतन उपज 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मानी गई है यानी कि कम समय में किसान को यह वैरायटी ज्यादा उत्पादन देगी 
इस वैरायटी के पौधों की लंबाई लगभग 160 से 165 सेंटीमीटर तक होती है बीज का वजन 5.30 ग्राम तक आंका गया है ऐसे में अगर किसान अच्छा उत्पादन लेना चाहता है तो इसी तरह की वैरियटयों का चयन करें