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देसी गाय-भैंसों की सरोगेसी, 1-2 की जगह 10 से 15 लीटर बढ़ेगी दूध देने की क्षमता

 

कीरतपुर का कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर विलुप्त होती देसी गाय-भैंस की नस्लें संरक्षित करने का हब बन गया है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत संचालित इस केंद्र में आईवीएफ तकनीक से गाय-भैंस की सरोगेसी कराई जा रही है।

इससे उच्च दूध उत्पादन क्षमता वाली गाय-भैंस की नई जनरेशन का विकास हो रहा है। केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट 2016 में शुरू किया था। अभी केंद्र में 18 से 19 बुल (सांड) हैं। नई तकनीक से गायों की दूध देने की क्षमता 1-2 लीटर से बढ़कर 10 से 15 लीटर तक हो जाएगी। 10-10 किसानों के ग्रुप बनाए हैं। उम्दा नस्ल के नर-मादा गाय-भैंस के बछड़े तैयार हो रहे हैं। इससे किसानों को तो लाभ होगा ही, शहरों में मवेशियों की संख्या कम होगी।


2016 में केंद्र सरकार ने शुरू किया प्रोजेक्ट, अभी 10-10 किसानों के ग्रुप बनाए

गाय-भैंसों के लिए बने 8 शेड

फिलहाल यहां गाय-भैंस के 8 शेड हैं।

इनमें विविध श्रेष्ठ नस्लों की 320 गायें व 160 भैंस हैं। इन्हें सालभर में 17 से 18 हजार क्विंटल खुराक लगती है। जिसमें भूसा, मक्का कड़वी, हरी घास आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। कर्मचारी भी हैं।

स्थायी वेटेरनरी डॉक्टर नहीं

पशु चिकित्सक की अभी स्थायी नियुक्ति नहीं है। यहां जब किसी मवेशी को उपचार की आवश्यकता होती है तो स्थानीय स्तर पर डॉ. ज्योति नेवाड़े, डॉ. शिल्पा चौधरी, केसला से गरिमा शुक्ला, डॉ. सौरभ आदि को बुलाना पड़ता है। इसके अतिरिक्त यदि और भी जरूरी हुआ तो नर्मदापुरम से वेटेरनरी डॉक्टर्स बुलाने पड़ते हैं।


सेंटर में हैं 13 नस्ल की गायें: 270 एकड़ भूमि में 25

करोड़ से बना कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर आंध्रप्रदेश के नेल्लोर के बाद देश में दूसरा है। फिलहाल यहां 13 नस्ल की गायें और 4 नस्ल की भैंसें हैं। इनमें साहीवाल, गिर, कांकरेज, रेड सिंधी, राठी, थारपारकर, मालवी, निमाड़ी, केनकथा, खिल्लारी, हरियाणा, गंगातीरी व ग्वालो नस्ल की गायें हैं। 4 नस्लों की भैंस में नीली राबी, जाफराबादी, भदावरी व मुर्रा शामिल हैं। सेंटर को 2016 में शुरू किया गया था।


किसानों की आय और दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ेगी

हम नई पीढ़ी की इन गाय-भैंस के बछड़ों की ऑक्शन के जरिए किसानों को बिक्री करते हैं। सांड और भैंसों को अपने पास रख लेते हैं जिससे इस तकनीक के लिए उनका आगे उपयोग किया जा सके। देशभर में हर साल लगभग 8 करोड़ सीमन डोज तैयार होते हैं। जबकि मांग 10 करोड़ की है। भविष्य में यह संख्या 15 करोड़ डोज तक बढ़ाई जाएगी। इस केंद्र से किसानों को उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले बैल का वीर्य, भ्रूण और बछड़े उपलब्ध होंगे। इससे उनकी आय और उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी।