Old Cultures: इंटरनेट और मोबाइल के इस दौर में आज भी जिंदा है पारंपरिक खेल चरभर, दादी-पोते को एक साथ खेलते देख मिलता है आंखों को सुकून, देखें फोटोज़
Traditional Game of Old Culture: इंटरनेट और मोबाइल के इस दौर ने पारंपरिक खेलों की अहमियत छीन ली है। अब आप देखते होंगे कि परिवार में अगर पांच सदस्य हैं, तो सभी अपने मोबाइल में व्यस्त मिलेंगे। लेकिन एक जमाना ऐसा भी था जब पूरा परिवार एक साथ बैठकर पारंपरिक खेल (Traditional Game) खेलते थे। आज के इस दौर में अगर यह बात किसी को बताएंगे तो भी वह विश्वास नहीं करेगा। क्योंकि आज के इस दौर में इंटरनेट और मोबाइल ने हर व्यक्ति के संस्कार, सुकून सब छीन लिया है। बच्चे मोबाइल के इतने आदि हो गए हैं कि अब उनमें चिड़चिड़ापन आने लगा है।
इस भागदौड़ भरे दौर में हरियाणा प्रदेश के राजस्थान सीमा से सटे सिरसा जिले में आज भी पारंपरिक खेलों को खूब महत्व (Importance of Traditional Game) दिया जाता है। सिरसा जिले के खेड़ी गांव में दादी-पोता की एक साथ पारंपरिक खेल चरभर खेलते हुए एक फोटो खुब वायरल हो रही है। बताया जाता है कि चरभर खेल का इतिहास सैकड़ो वर्ष पुराना है। हमारे पुरखों के जमाने में यह खेल लोगों द्वारा खूब पसंद किया जाता था। लेकिन मोबाइल और इंटरनेट के आने के बाद इस खेल की अहमियत छीन गई।
फिर से बढ़ने लगा है पारंपरिक खेलों का महत्व
इन दिनों दादी-पोते की एक साथ पारंपरिक खेल चरभर खेलते हुए वायरल हो रही फोटो मन को सुकून तो पहुंचाती ही है, साथ ही साथ यह भी दर्शाती है कि पारंपरिक खेलों का महत्व (Importance of Traditional Game) आज के इस दौर में भी जिंदा है। हालांकि बीते कुछ वर्षों में इंटरनेट और सोशल मीडिया के साथ मोबाइल और टीवी जैसे मनोरंजन के साधों ने लोगों को पारम्परिक खेलों से दुर कर दिया है।
मनोरंजन के लिए इस दौर में युवा ही नही बल्कि बच्चे भी सोशल मीडिया, मोबाइल गेम और वीडियो आदि को अधिक पसंद कर रहे है, लेकिन पिछले कुछ समय से खासकर हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में पारम्परिक खेल (Traditional Game) जैसे सांप सीढ़ी, लूडो, तिग्गा, चरभर आदि फिर से जिंदा होने लगे हैं। पारंपरिक खेलों की सबसे खास बात यह है कि मनोरंजन के लिए इन खेलों पर किसी प्रकार का पैसा खर्च नहीं करना पड़ता। इसके अलावा पारंपरिक खेल आपसी भाईचारे और प्रेम भावना को भी बढ़ाते हैं।