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अच्छी फसल व मिट्टी में नमी संरचना और पोषण संतुलन बनाए रखने में कारगर है मल्चिंग तकनीक

 

अच्छी खेती के लिए मिट्टी में नमी, संरचना और पोषण संतुलन बनाए रखना भी उतना ही जरूरी होता है। प्रगतिशील किसान यशपाल खोला ने बताया कि आज की परिस्थितियों में पुरानी और बेहद उपयोगी तकनीक मल्चिंग है। यह तकनीक न सिर्फ मिट्टी की रक्षा करती है, बल्कि उत्पादन, पोषण और जल-संरक्षण के क्षेत्र में परिवर्तन ला सकती है। मल्चिंग तकनीक कम लागत, अधिक लाभऔर स्थायी जैविक खेती का आधार बन चुकी है। प्राकृतिक मल्च डालने के बाद नाइट्रोजन की कमी हो सकती है, इसलिए गोबर की खाद देना आवश्यक है।

जानिए... मल्चिंग सिस्टम

मल्चिंग तकनीक में खेत की मिट्टी की ऊपरी सतह को एक आवरण (कवर) से ढक दिया जाता है। यह आवरण मिट्टी को सीधे सूर्य की गर्मी, वर्षा के कटाव, खरपतवार और नमी के वाष्पीकरण से बचाता है। यह आवरण प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों प्रकार का हो सकता है।

प्राकृतिक मल्च : इसमें सूखी घास, फसल अवशेष, भूसा, पत्तियां (नीम, बबूल आदि), नारियल की भूसी, लकड़ी की छाल व कम्पोस्ट या खाद।

प्लास्टिक मल्च : प्लास्टिक मल्च शीट (काली, चांदी-काली), बायोडिग्रेडेबल फिल्म, रबर ग्रेन्यूल मल्च व फैब्रिक शीट।


खेती में मल्चिंग के फायदे 

नमी संरक्षणः मिट्टी से पानी के वाष्पीकरण को रोकता है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम होती है।

खरपतवार नियंत्रणः मल्च खरपतवार को प्रकाश से वंचित करता है, जिससे उनका विकास रुकता है।

पौधों की सुरक्षाः मिट्टी अधिक

समय तक ठंडी रहती है, जड़ों को गर्मी से सुरक्षा मिलती है।

अंकुरण और वृद्धि में सहायताः बीज जल्दी अंकुरित होते हैं और पौधों की जड़ें गहरी और मजबूत बनती हैं।

उर्वरक और कीटनाशक की खपत कमः प्राकृतिक संतुलन बेहतर रहता है, जिससे अतिरिक्त रसायनों की जरूरत नहीं पड़ती।

फसलों के अनुसार मल्चिंग

टमाटर, मिर्चः काली प्लास्टिक मल्च

लौकी, खीराः सूखी घास, नारियल की भूसी

बैंगन, भिंडीः फसल अवशेष, पत्तियां

आलू, प्याजः भूसा, जैविक कम्पोस्ट
मौसम के अनुसार मल्चिंग

वर्षा क्षेत्रः अजैविक मल्च से जल कटाव और खरपतवार को रोका जा सकता है।

सर्द क्षेत्रः काली प्लास्टिक मल्च से मिट्टी की गर्मी बनाए रखना आसान।