{"vars":{"id": "115716:4925"}}

फूल गोभी की खेती करने के लिए जून जुलाई का समय सही, जाने जमीन के अनुसार किस्मों के बारे में

 

किसानों द्वारा फूलगोभी की सालभर लगभग 9 से 10 महीने काश्त की जाती है। इससे पूरे साल फूलगोभी की उपलब्धता रहती है। किसान जून-जुलाई के महीनों से लेकर जनवरी-फरवरी तक इसकी अच्छी लगातार पैदावार ले सकते हैं। फूलगोभी की मौसम, क्षेत्र के आधार पर और तापमान को देखते हुए भित्र-भिन्न प्रकार की उन्नत किस्में और शंकर किस्मों का चयन करना जरूरी है। सब्जी सलाहकार महाराणा प्रताप उद्यान विश्वविद्यालय डॉ. सुरेश कुमार अरोड़ा ने बताया कि फूल गोभी के तीन वर्ग हैं, जिनके हिसाब से उचित समय पर शंकर प्रजातियों का चुनाव करके वैज्ञानिक तरीके से रोपाई करें। इससे किसान अधिक उत्पादन ले सकेंगे।

अगेती  फूलगोभी 

जून से जुलाई तक रोपाई के लिए विशेष संकर की किस्में हैं। इनमें फूलगोभी 1024, व्हाइट डायमंड, फूलगोभी 250, गिरिजा आदि हैं।

मध्य सीजन फूल गोभी 

सितंबर से अक्टूबर तक रोपी जाने वाली महत्वपूर्ण फूलगोभी की किस्में हैं- माही, सुहासिनी, स्नो व्हाइट, बिशप, पोंडरैट, नलिनी आदि।

पछेती किस्में फूलगोभी 

पछेती फूल गोभी की संकर किस्में अक्टूबर से पूरे मार्च तक रोपा जा सकता है। इनमें कैस्पर, लकी, विनर, फूलगोभी नंबर 95, फूल गोभी नंबर 1522, स्नोबाल-16 (चीन का मोती) अगस्त से सितंबर तक रोपी जाने वाली रंगीन फूलगोभी की वेलेंटीन और करोटिना किस्में भी विकसित की गई हैं।


फूलगोभी रोपाई विधि 

फूलगोभी की पौध की ऊपर उठे बेडों पर

रोपाई करें। पौधरोपण से पहले बेडों पर टपका सिंचाई की 16 एमएम नाप की दो नालियां बिछानी चाहिए। उसके बाद इन बेडों को प्लास्टिक मल्च की चद्दर से ढक दें। मल्च की काली सतह भूमि की ओर होनी चाहिए। चांदीनूमा सतह आसमान की तरफ होनी चाहिए।

बेड़ों की हर वर्ग के लिए ऊंचाई लगभग 35 गुना 40 सेंटीमीटर रखें। बेडों का फासला एक मीटर से सवा मीटर होना चाहिए। रोपाई हमेशा दोपहर के बाद ही करनी चाहिए। रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करते समय पानी में सूडोमोनाश (बायोलॉजिकल बैक्ट्रीसाईड), ट्राइकोडरमा वीरडी (बायोलॉजिकल फफूंदनाशक) ये सभी एक जैविक/बायोलॉजिकल सूक्ष्म नियंत्रक पदार्थ हैं, जिन्हें फर्टिगेशन की विधि से रोपाई के तुरंत बाद फसल को दिया जाता है। दूसरी सिंचाई लगभग 5 से 7 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। ध्यान रखें कि सिंचाई करते समय जैविक सूक्ष्म पदार्थों के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी रसायनिक तत्व इस्तेमाल ना करें। ऐसा करने पर मित्र जैविक फफूंद नष्ट हो जाती है।