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मध्य प्रदेश में दो और बच्चों की मौत , केंद्र ने कहा की 2 साल तक के बच्चों को खांसी सर्दी की दवा न दी जाए

 

मध्यप्रदेश में जानलेवा कफ सिरप से शुक्रवार को दो और बच्चों की मौत हो गई। बीते 24 दिन में मप्र और राजस्थान में कुल 11 बच्चे इसके शिकार हो चुके हैं।

इस बीच, केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों को परामर्श जारी किया है। इसमें कहा गया है कि 2 साल से छोटे बच्चों को खांसी और सर्दी की दवाएं न दी जाएं। यह एडवाइजरी स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज (डीजीएचएस) ने जारी की है। इसने कहा है कि खांसी की दवाओं की आमतौर पर 5 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए अनुशंसा नहीं की जाती है। अगर दी भी जाएं तो डॉक्टर की सलाह, सही डोज, कम से कम समय और एक ही दवा के प्रयोग के साथ दी जानी चाहिए।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र, राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के दल ने मध्य प्रदेश में विभिन्न कफ सिरप के नमूने लिए
किसी में भी डायथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) या एथिलीन ग्लाइकॉल (ईजी) नहीं पाया गया है। ये दोनों किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं। मध्य प्रदेश राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने भी तीन नमूनों का परीक्षण किया और डीईजी/ईजी की अनुपस्थिति की पुष्टि की। मप्र स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि जिन दो कफ सिरप - कोल्ड्रिफ और नेक्सा डीएस को छिंदवाड़ा कलेक्टर ने बैन किया है, उनकी रिपोर्ट एक-दो दिन में आ जाएगी।

राजस्थान में सरकारी लैब में जांच, कहा-कोई कमी नहीं :

राजस्थान में डेक्सट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड दवा को सरकार ने क्लीन चिट दे दी है। यहां जयपुर, भरतपुर, अजीतगढ़, चूरू, बांसवाड़ा सहित अन्य जिलों में कथित रूप से केयसंस का डेक्सट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड सिरप पीने से दो बच्चों की मौत हो गई और 35 से अधिक लोग बीमार हो गए थे। इसके बाद ड्रग विभाग की ओर से केएल 25/144, केएल 25/147, केएल 25/148 बैच के लिए सैंपल लिए गए थे। इन सभी की सरकारी लैब में जांच कराई गई। शुक्रवार को आई रिपोर्ट में बताया गया कि सैंपल पूरी तरह सही हैं। इनमें कोई कमी नहीं है। ऐसे में अब पीड़ित परिवारों का सवाल है कि आखिर इन मौतों और बीमार होने के पीछे की वजह क्या है?

तमिलनाडु ने कोल्ड्रिफ पर बैन लगाया : तमिलनाडु सरकार ने कोल्ड्रिफ कफ सिरप की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया। बाजार से हटाने के आदेश। कांचीपुरम जिले के सुंगुवरचत्रम स्थित दवा कंपनी के संयंत्र से भी नमूने एकत्र किए गए। लैब रिपोर्ट आने तक उत्पादन रोकने का आदेश दिया। फूड सेफ्टी अधिकारी के मुताबिक, कंपनी ने पुडुचेरी, राजस्थान, मध्य प्रदेश को कफ सिरप की आपूर्ति की है।

मप्र के छिंदवाड़ा के परासिया में बच्चों के स्वास्थ्य पर नजर रखने के लिए

डोर-टू-डोर सर्वेक्षण शुरू किया गया।

महाराष्ट्र के ठाणे, पालघर और

मीरा-भायंदर, वसई-विरार की पुलिस ने 26,935 लीटर कोडीन-आधारित कफ सिरप नष्ट किया।

40 बार फेल हो चुका कफ सिरप, फिर भी सरकारी योजना में शामिल

भारत में कफ सिरप से जुड़ी मौतें नई नहीं हैं। 1972 में पहली बार डीईजी से जुड़ा केस सामने आया था। इसके बाद 1990, 2006 और 2019 में भी कई बच्चों की मौतें हुई। हर बार जांच कमेटियां बनीं, रिपोर्ट आई और कुछ फैक्ट्रियां बंद भी हुई, लेकिन रेगुलेटरी सिस्टम की खामियां जस की तस रहीं।

राजस्थान में जिस डेक्सट्रोमेथॉर्फन सिरप की बात हो रही है, वह 40 बार लैब टेस्ट में फेल हो चुका है। इसके बावजूद निजी लैब की 'क्लीन चिट' के दम पर उसे सरकारी फ्री मेडिसिन स्कीम में दोबारा शामिल कर लिया गया। इसके अलावा दो - साल में कंपनी की पांच जगह से - विभिन्न शिकायतें आई थीं, लेकिन - उन्हें भी दरकिनार कर दिया गया। - सीडीएससीओ की एक साल पहले आई रिपोर्ट के अनुसार टेस्ट किए गए 7,087 बैच में से 353 बैच 'नॉट ऑफ स्टैंडर्ड क्वालिटी' पाए गए। इनमें से नौ डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकोल से दूषित थे। फिर भी कई राज्यों की सप्लाई एजेंसियों ने इन्हें सरकारी वितरण में जारी रखा।

सवालों पर सिस्टम मौन : इस रिपोर्ट पर स्पष्टीकरण के लिए भास्कर ने सीडीएससीओ से पूछा कि 40 बार फेल हो चुका कफ सिरप सरकारी योजना में कैसे लौटा? वहीं, आईसीएमआर से पूछा कि क्या उसने डीईजी / ईजी टॉक्सिसिटी पर कोई अध्ययन किया है और बच्चों में इसके दीर्घकालिक प्रभाव पर कोई गाइडलाइन जारी की है? लेकिन इन सवालों पर अब तक कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया गया है।