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शरदकालीन आलू की बिजाई का समय शुरू, इस विधि से करें खेती , इन 13 किस्म से पैदावार होगी भरपूर

 

आलू की व्यावसायिक खेती हो रही है। अब आलू की बिजाई का समय शुरू हो चुका है। ऐसे में किसान वैज्ञानिक विधि से राज्य के लिए अनुसंशित किस्मों की विजाई करें तो अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

आलू की शरद कालीन विजाई का उचित समय 15 सितंबर से 15 अक्तूबर के बीच माना जाता है। हरियाणा में 34.72 हजार हेक्टेयर में आलू की खेती होती है। इसमें औसतन पैदावार लगभग 80 लाख मीट्रिक टन है।

महाराणा प्रताप वागवानी विश्वविद्यालय करनाल के सलाहकार डॉ. एसके अरोड़ा ने बताया कि आलू की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों के लिए आलू की प्रमुख किस्म की पहचान करना बेहद आवश्यक है। खासकर हरियाणा के लिए विशेषज्ञ आलू की 13 किस्में लगाने की सलाह देते हैं।


बीज एवं खेत की तैयारी

बीज स्वस्थ हो, विशेषकर विषाणु बीमारियों से मुक्त व शुद्ध होना चाहिए। इसे किसी भी प्रमाणित संस्था से खरीदा जाना चाहिए। खेत में जल का निकास बेहतर होना आवश्यक होता है। लवणीय और क्षारीय मिट्टी में आलू की खेती संभव नहीं है। खेत को पहले समतल करें तथा जल निकास का विशेष प्रबंध करें। यदि खेत में ढेले बन जाएं तो गिरडी चलाकर उन्हें तोड़ देना चाहिए।

फसल चक्र और दूरी

आलू की फसल ऐसे खेतों में अधिक होती है जिन खेतों में दो तीन साल से आलू की खेती न की गई हो। इस प्रकार का फसल-चक्र अपनाने से फसलों में फैलने वाली बीमारी की रोकथाम हो सकेगी। बीज की फसल आलू के अन्य खेतों से लगभग 20-30 मीटर की दूरी पर लगाई जानी चाहिए।

कुफरी जवाहर : इस अगेती किस्म के पौधे के तने छोटे और पत्ते बड़े आकार के होते हैं। इसके कंदों की उपज अधिक होती है तथा उनका आकार चंद्रमुखी की तुलना में थोड़ा सा छोटा होता है। इस किस्म के आलू गोल, अंडाकार, चमकीले व सफेद कुफरी छिलके और गुदे वाले होते हैं। इस किस्म में पहुॅती अंगमारी का प्रकोप कम होता है। बिजाई के 90 दिन बाद खोदने पर 100-105 क्विंटल प्रति एकड़ उपज मिल जाती है।


कुफरी चंद्रमुखी : यह एक अगेती किस्म है। है और बिजाई के 75 दिन बाद भी खोदने पर 80 क्विंटल प्रति एकड़ तक उपज देती है। अगर बिजाई के 90 दिन बाद खोदाई की जाए तो उपज 100 क्विंटल प्रति एकड़ मिलती है। इस किस्म के कंद चमकीले, चपटे, सफेद छिलके, हल्के पीले गूदे और चपटी आंखों वाले होते हैं।

कुफरी सिंदूरी : यह पछेती किस्म है। बिजाई के 120- 125 दिन में तैयार होती है। इसकी उपज 120 क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त होती है। इस किस्म के आलू मध्यम से बड़े आकार के चिकने और गोल होते हैं। आलू में आंखें धंसी हुई और गूदा पीला होता है। इसका छिलका हल्का गुलाबी रंग का होता है। इस किस्म का भंडारण अधिक दिनों तक किया जा सकता है।

कुफरी बादशाह : इस किस्म की उपज कुफरी चंद्रमुखी की तुलना में अधिक होती है लेकिन इस किस्म की अगेती बिजाई नहीं की जा सकती है। बिजाई के 100-110 दिन बाद 120 क्विंटल प्रति एकड़ तक उपज मिलती है। इस किस्म के आलू बड़े अंडाकार, सफेद छिलके, चिकनी सतह, मटमैले गूदे व चपटी आंखों वाले होते हैं। खोदने के बाद खुला रखने पर इस किस्म के आलुओं का रंग दूसरी किस्मों की तुलना में शीघ्र खराब होता है। इस किस्म में अंगमारी रोग का प्रकोप कम होता है।

कुफरी सतलुज (जेआई 5857): ये आलू की अगेती मध्यम किस्म है। इस किस्म की बिजाई के 100-110 दिन बाद खोदने पर औसत पैदावार 120-140 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से ली जा सकती है। इस किस्म के आलू बड़े आकार के अंडाकार चिकने, सफेद व चपटी आंखों आलू वाले होते हैं। इस किस्म की भंडारण क्षमता भी अच्छी होती है।

कुफरी पुष्कर : ये एक मध्यम किस्म है। इसके कंद अंडाकार, पीली त्वचा, आंखें मध्यम धंसी हुई हल्के पीले गूदे बाले होते हैं। बिजाई के 90-100 दिन के बाद खोदने पर इसकी उपज 150-160 क्विंटल प्रति एकड़ ली जा सकती है। इस किस्म में पहुॅती अंगमारी रोग का प्रकोप कम होता है।

कुफरी गौरव: आलू की ये मध्यम किस्म है, बिजाई के 90-100 दिन के बाद खुदाई करने पर औसतन 140-160 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार होती है। इस किस्म के आलू आकार में बड़े, चपटे, अंडाकार, छिलके व सफेद गूदे वाले होते हैं। यह एक अच्छी भंडारण क्षमता रखने वाली किस्म है। इसमें अंगेती व पछेती अंगमारी रोग का प्रकोप भी कम होता है।

कुफरी पुखराज : ये आलू की एक अगेती मध्यम किस्म है। इसके कंद पीली त्वचा वाले, गोल अंडाकार, आंखें हल्की धंसी हुई और गूदा हल्का पीला रंग लिए होता है। बिजाई के 75 दिन के बाद खोदने पर इसकी औसतन पैदावार 90 क्विंटल तथा 90-100 दिन के बाद खोदने पर 140-160 क्विंटल प्रति एकड़ ली जा सकती है। इस किस्म में पछेती अंगमारी रोग के प्रति प्रतिरोधित और पछेती अंगमारी रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधित है।

कुफरी फ्राईसोना : ये एक मध्यम एवं समय से पकने वाली किस्म है, जो विष्वायन (फ्रेंच फ्राई) के लिए उपयुक्त है। इस किस्म के आलू मध्यम आकार, लंबे आकार, माध्यम सफेद, ऊथली आंखों वाले, सफेद गूदा व चिपचिये रचना बाले होते हैं। बिजाई के के 90 दिन बाद खोदाई करने पर इसकी पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है। ये पहुंती अंगमारी रोग के प्रतिरोधी है।

कुफरी गंगा : ये एक मध्यम किस्म है। इसके कंद अंडाकार, सफेद क्रीम त्वचा, आंखें उथली और हलके पीले गूदे वाले होते हैं। बिजाई के 90-100 दिन के बाद खोदने पर इसकी पैदावार 140-160 क्विंटल प्रति एकड़ ली जा सकती कती है। इस किस्म में पछैती अंगमारी रोग का प्रकोप कम होता है।

कुफरी नीलकंठ : इसके कंद अण्डाकार, बैंगनी त्वचा, पीले गूदा वाले लेकिन उच्च एंटीऑक्सिडेंट (एंथोसायलिन और कैरोटी नॉयड) होते हैं। आंखें उथली हुई होती हैं। बिजाई 90-100 दिन के बाद खोदने पर 140-152 कि क्विंटल प्रति है। इस किस्म में पौंटी अंगमारी रोग का प्रकोप कम होता है।

कुफरी लिमा : यह आलू की ए आलू की एक मध्यम किस्म है। इस किस्म की बिजाई अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में की जा सकती है। इसके कंद अंडाकार, सफेद क्रोम गूंदे वाले, आंखें उथली हुई, अच्छे रखरखाव और शुद्ध गुणवत्ता वाले होते हैं। इसकी पैदावार 120-140 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाती है।

कुफरी थार-2 : ये आलू की एक मध्यम किस्म है। इसके कंद अंडाकार, त्वचा एवं गदा हल्का पोला, आंखे उथली होती हैं। इसमें कम सिंचाई में भी अच्छी पैदावार ली जा सकती है। इसकी पैदावार 130-140 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाती है। पर्छती अंगमारी रोय का प्रकोप भी कम होता है।