November 24, 2024

Raag Ratlami Mafia : शहर से छीन ली गई शहर की शान,लेकिन न नागरिक ना नेता कोई नहीं परेशान

-तुषार कोठारी

रतलाम। शहर की पहचान रेलवे से होती आई है। मुंबई दिल्ली के बीचो बीच होने से शहर की हैसियत रेलवे के मामले मे हमेशा से उंची रही है। यहां से गुजरने वाली फास्ट और सुपरफास्ट गाडियों की वजह से भी दूर दूर के लोग मुंबई दिल्ली जाने के लिए रतलाम आया करते थे। लेकिन कोरोना के लाकडाउन ने लम्बे वक्त के लिए पटरियों को सूना कर दिया था। अब जबकि पटिरयों पर गाडियां फिर से दौडने लगी है,कभी रतलाम की शान समझी जाने वाली एक महत्वपूर्ण एक गाडी को रतलाम से छीन लिया गया है। सबसे दुखदायी बात यह है कि शहर के साथ हुए इस अन्याय से ना तो कोई नेता परेशान हुआ ना कोई नागरिक। रेलवे को सलाह देने वाले सरकारी उपभोक्ताओं में से भी किसी ने इस पर कोई आवाज नहीं उठाई।

यह गाडी है फ्रन्टियर मेल,जिसे अब स्वर्णमन्दिर मेल का नाम दिया जा चुका था। मुंबई से अमृतसर को जोडने वाली यह शानदारी गाडी आजादी के पहले से चलती आ रही थी। रतलाम से राजधानी जाने वालों के लिए यह बडी सुविधाजनक थी। यह गाडी शाम को सात बजे चला करती थी और अगली सुबह दिल्ली पंहुच जाया करती थी। उधर दिल्ली से आने के लिए भी यह सुविधाजनक थी। यह दिल्ली से रात को चला करती थी और अगली सुबह रतलाम पंहुच जाती थी। इसी तरह मुंबई से आने जाने के लिए भी यह बडी सुविधाजनक समझी जाती थी।

कई दशकों से रतलाम रेलवे स्टेशन की शाम इसी गाडी से गुलजार हुआ करती थी। तांगों के दौर से आटो रिक्शा के आने तक रेलवे स्टेशन पर शाम की चहल पहल इसी फ्रन्टियर मेल से होती थी। लेकिन अब र्ेलवे स्टेशन की शामें सूनी हो गई है। फ्रन्टियर मेल नदारद है। ना शाम को ना सुबह दोनो ही वक्त फ्रन्टियर मेल नजर नहीं आता।

कोरोना के लाकडाउन ने तमाम गाडियों के पहिये जाम कर दिए थे। अब कोरोना का कहर सिमटने लगा है और रेलवे ने लगभग तमाम गाडियों को फिर से शुरु कर दिया है। लेकिन फ्रन्टियर मेल के गायब हो जाने पर ना तो कोई सांसद,ना विधायक,ना उपभोक्ता सलाहकार समिति के किसी सदस्य ने अब तक रेलवे वालों से यह पूछा कि इस बेहतरीन गाडी को कहां गायब कर दिया है? असल में रे्लवे वालों ने स्वर्णमन्दिर मेल का समय पूरी तरह बदल दिया है। जो स्वर्णमन्दिर एक्सप्रेस सुबह और शाम के वक्त रतलाम से गुजरा करती थी,वह अब आधी रात के बाद रतलाम से गुजर जाती है। फ्रन्टियर का वक्त बदला गया,और इस वक्त के बदलने से मुंबई दिल्ली जाने वालों के लिए एक बडी सुविधा कम हो गई। लेकिन आश्चर्य यह है कि किसी जनप्रतिनिधि या रेलवे उपभोक्ता सलाहकार समिति के किसी सदस्य ने ना तो विरोध जताया और ना ही इस बारे में पूछने तक की जहमत उठाई। कुल मिलाकर स्टेशन की शामों को गुलजार करने वाला फ्रन्टियर मेल अब रातों की नींद खराब करने वाली गाडी बन कर रह गया है।

कैसे ढूंढेगे माफिया को…..?

सूबे की सरकार के कहने पर अब जिले के इंतजामिया ने भी माफियाओं पर लगाम लगाने की घोषणाएं कर दी है। इंतजामिया ने शहर के बाशिन्दों को भी कहा है कि जिस किसी के पास माफियाओ से जुडी जानकारी हो,वे इंतजामिया को मुहैया कराएं। कहा तो यह भी गया है कि तमाम माफियाओं पर अब सरकारी डण्डा चलने वाला है। इंतजामिया ने यह भी जानकारी दी है कि जनता सक्रिय हो गई है और कई सारी सूचनाएं आने लगी है।

वैसे शहर के माफियाओं को ढूंढना कोई कठिन काम नहीं है। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि माफिया बिना सरकारी सहमति के माफिया बन ही नहीं सकते। यानी कि जितने भी माफिया है वो सब सरकारी कारिन्दों की जानकारी में ही होते है। भू माफियाओं की तमाम जानकारी नजूल और निगम वालों को रहती है,तो एजुकेशन माफिया की तमाम जानकारी शिक्षा वाले महकमे के पास होती है। शराब माफिया के एक-एक बन्दे को आबकारी और पुलिस वाले जानते है। दवा माफियाओं की अच्छी खासी दोस्ती ड्रग महकमे के अफसर से होती है। खाद्य सामग्र्रियों में मिलावट करने वाले तमाम कलाकारों को खाद्य विभाग वाले जानते पहचानते है। तमाम सारी जानकारी होने के बावजूद इंतजामिया जनता से माफियाओं की जानकारी मांग रहा है।

लोगों की नजरें इस बात पर टिकी है कि असल में इन माफियाओं का होगा क्या?जिन माफियाओं पर पहले से कार्यवाही की तलवारें लटकी पडी है,उनके खिलाफ तो ठीक से कार्यवाही नहीं हो रही। ऐसे में नए माफियाओं की सूचि बनाने से होगा भी क्या? शहर के जमाम जमीन माफिया जानते है कि उनके द्वारा बरसों से दबाई गई और बेच दी गई जमीनंों का अब कुछ बी नहीं होने वाला। रियासत काल मेंं लीज पर दी गई तमाम बेशकीमती जमीनें लीज खत्म होने के बाद या तो बेची जा चुकी है या बेचने की तैयारियां हो रही है। ताजा मामला एक अस्पताल का है,जिसकी बेशकीमती जमीन के सौदें की चर्चाएं फिजाओं में है। इसी समुदाय के सबसे फेमस स्कूल की जमीन का किस्सा भी इसी तरह का है। लीज बरसों पहले खत्म हो चुकी है,लेकिन तमाम अफसरों के बच्चों को पढाने वाले इस स्कूल के खिलाफ बोलने की हैसियत किसी की नहीं है। सरकारी फाईलों में ऐसे सैकडों मामले पहले से दबे पडे है,जिन पर बरसों पहले कार्यवाही हो जाना चाहिए थी।

लेकिन फिर भी अगर इंतजामिया ने कहा है कि माफियाओं को कुचला जाएगा तो फिर से उम्मीद लगाई जाए कि माफिया से मुक्ति मिलेगी। वैसे ज्यादातर जानकारों का कहना है कि ऐसे अभियानों का अन्त भाव बढाने पर हो जाता है। दो चार पर कार्यवाही होगी,तो बाकी के घबराएंगे और घबराएं हुए तमाम माफिया बढे हुए भावों के प्रस्ताव पेश कर देंगे। तब तक जनता भी इसको भूलने लगेगी और फिर सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा।

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