ब्रझाण्ड का पांचवां बल – जीवन तीन अविनाषी का संगम
-डॉ चंद्रप्रकाश त्रिवेदी
सा विद्या या विमुक्तये षिक्षा वह जो बंधनो से मुक्त करे
प्रोफेसर चन्द्र प्रकाष त्रिवेदी दीर्घ, प्रध्यापकिय और प्रषासनिक अनुभव के साथ, वेदविज्ञान, और आधुनिक विज्ञान के सषक्त हस्ताक्षर है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आईंस्टिन के वाद से आगे ब्रझाण्ड के पांचवे बल की खोज कर विष्व मे हल-चल मचा दी है। जिसे अमेरिकन जरनल आफॅ ग्रह-विज्ञान एवं ब्रझाण्ड भौतिक विज्ञान ने प्रमुखता से छापा है। इसके साथ ही सिंधु-घाटी की खोज के सौ वर्ष पष्चात सिलो-मोहरो को अनाव्रत कर रहस्य से पर्दा हटाया, और भारत के गौरवषाली अतीत को विष्व मे स्थापित किया। इस खोज को अमेरिका के सीएसके भौतिक विज्ञान एव ससायन विज्ञान जरनल ने प्रकाषित किया। इसके पूर्व ब्म्त्छ वैज्ञानिको की खोज हिग्स फिल्ड गॉड पार्टीकल, आधारिय स्थान से मूल-भूत कणो को भार प्राप्त हुआ, आधारिय आकाष से कैसे भार प्राप्त हुआ, इसे अमेरिका के अंतर्राषि््टय जरनल आफॅ ब्रह्माण्ड विज्ञान, ग्रह-नक्षत्र भौतिक विज्ञान के प्रकाषित किया, जिसने समस्त विज्ञान जगत का ध्यान खिंचा इसक आगे डॉ. त्रिवेदी ने जीवन की उत्पत्ति और चेतना विज्ञान के सदियों लम्बित रहस्य को सुलझाया, जिसे ग्लोबल जरनल आफॅ अग्रणि षोध अमेरका ने प्रकाषित किया, जिस पर प्रो. त्रिवेदी गत 50 वर्षो से अनुसंधानरत है। रतलाम आगमन 197ु1 मे उन्हे श्री अरविंदो के षिष्य श्री स्वयंप्रकाष उपाध्याय का सानिध्य प्राप्त हुआ, उन्होने सूर्य साधना के पथ पर अग्रसर किया, और 2010 में सूर्य को खुली आंखो से योग बल से सूर्य के चरमोत्कर्ष दोपहर में घण्टो सूर्य की भौतिक क्रियाओं का अध्ययन किया, जिसकी तुलना नांसा अनुसंधान केन्द्र के चित्रो, वेद विज्ञान और ग्राड केन्योन अमेरिका मे करीब 11 हजार वर्ष पुर्व किए गए सूर्य के अध्ययन से प्राप्त प्रमाणो से आईंटिन के एकीकृत बल ब्रझाण्ड के पांचवे बल की खोज की, अभी तक भौतिक विज्ञान में चार बलो की मान्यता है। डॉ.त्रिवेदी ने यह भी बताया कि चेतन अविनाषी वाक् स्वर विज्ञान एकीकृत महाबल है, जो सर्वप्रथम सृष्टि उष्त्पत्ति के समय उत्पन्न हुआ।
सृष्टि की प्राग्वस्था
सृष्टि की प्राग्वथा में गहन अंधकार के सिवाय कुछ नही था, सब ओर निष्चल-निरव षांंत, इस स्थिति मे अंधकार मे अंधकार की छवि के समान विपरीत गुणवाली अविपाषी स्वर-तरंग उत्पन्न हुई, जिसने गहन अंधकार निष्क्रिय काली ऊर्जा-डार्क मैटर को आव्रत कर, उसे स्थान प्रदान किया, जो सौर जगत की पूर्व ईकाई का अण्डेनुमा आकार था। हिग्स फिल्ड, आधारिय आकाष से आकाष की उत्पत्ति हुई। अविनाषी स्वर-तरंग, सनातन निष्क्रिय चुॅबकत्व का सघन क्षेत्रा का प्रतिपदार्थ अचुम्बकीय, आवेष-रहित, भारहिन प्रतिपदार्थ है। जिसकी खोज वैज्ञानिक कर रहे है।
प्रेरित चुम्बकत्व की ध्वनि-प्रतिध्वनि, और उनके दबाव-प्रतिदबाव ने काली निष्क्रिय ऊर्जा, जिसे डार्क मैटर पदार्थ कहा जरता है, वह पदार्थ नही है, यह सनातन निष्क्रिय, सुषुप्त गहन चुम्बकीय क्षेत्र का द्योतक है, जिसे अविनाषी ध्वनि, स्वर-तरंग ने ध्वनि-प्रतिध्वनि, दबाव-प्रतिदबाव से प्ररित चुम्बकत्व ग्रहण किया, जैसे चन्दमा मे प्रेरित चुम्बकत्व है, और पृथ्वी के चारो तरफ चक्कर लगाता है।
समानुपाती, विपरीत अनुर्द्धेय तरंग वैसे ही स्वर-तरंग ने प्रेरित चुम्बकत्व से काली, सनातन,सघन, निष्क्रिय काली ऊर्जा को आकषण-विकर्षण से दो समानुपरती विपरीत बल मे हल-चल उत्पन्न् हुई, और स्वर-तरंग को स्पंदन के लिए स्थान मिल गया। जहॉ यह तरंग टकराती वहॉ अपना चिन्ह, जैसे मोम, छोड देती, इससे, जैसे हम चाबुक लहराते है, और सायं की आवाज होती है, वैसे ही ध्वनि उत्पन्न हुई, जो सृष्टि का प्रथम बीज है। अविनाषी स्वर-तरंग टकराती और पलट जाती, और ध्वनि-प्रतिध्वनि से सम्पूर्ण क्षेत्र को आवृत कर लिया, स्वर-तरंग ने प्रेरित चुम्बकत्व से घात-प्रतिघात चिन्ह के अर्धघुमाव से निष्क्रिय विपरीत चुम्बकत्व को विपरीत दिशा में घुमाया, जिसके, इलेक्ट्ान विस्थापन से ताव्र उष्मा उत्पन्न हुई, और समानुपाती विपरीत अनुर्द्धेय तरंग से कार्यकारी, कार्यषील ऊर्जा सक्रिय हुई। मूलभूत कण इलेक्ट्ान के विस्थापन से आक्सिकाण, एवं अवकरण की अनन्त श्रंखला से सृष्टि निर्माण प्रारम्भ हुआ।
महा विस्फोट बिग-बेंग
अविनाशी वाक् स्वर-तरंग, महाबल है, जिसके दबाव-प्रतिदबाव, ध्वनि-प्रतिध्वनि इलेक्ट्ान विस्थापन से घनघैर उष्मा ऊर्जा केन्द्र मे संघनित होने से भयंकर विस्फोट बिग बेंंग हुआ। तथा कार्यषील ऊर्जा प्रकाष, और ध्चनि के साथ सक्रिय हुई।
प्युरीन और पायरीमिडीन क्षार इलेक्ट्रान विस्थापन से घनघोर भयंकर उष्मा उत्पन्न होती है, इस अतिउच्च तापक्रम पर कार्यषील ऊर्जा और समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग के संयोग से इलेक्ट्रान के विस्थापन द्वारा डीएनए के के क्षार प्युरीनए और पायरीमिडीन क्षार, जिनमे सिर्फ नायट्ोजन का अंतर होता है, का निर्माण हुआ, जो जीवन का घट-कुम्भ्भ है, जो अतिगर्म गैस पिण्डो के साथ अपनी समानुपाती विपरीम अनुर्द्धेय तरंग से जुडे हुए बंदुक की गोली के समान चारो दिष्ससओं में फैले ।
‘नेबुला‘ में विस्फोट से सूक्ष्म ध्वनि और सूक्ष्म प्रकाष कण धुऐं के अति गर्म बादलो के साथ प्रचण्ड वेग के साथ सीधे तीव्र गति से दो पिपरीत धाराओ की बाढ के समान आपस मे टकराते हुए गर्म गैस पिण्डो में बहे। इनकी गति को विराम परमाणु के निर्माण के साथ मिला, कि हिग्स फिल्ड अंतर्ग्रहित आकाष से मूलभूत कणो को भार प्राप्त हुआ, और ग्रह-नक्षत्र अस्तित्व में आऐं।
दोनो बल ध्वनि तरंग की सूक्ष्मतम् ईकाई फोनॉन और प्रकाष कण की सूक्ष्मतम् ईकाई फोटॉन परस्पर समानुपाती और विपरीत स्वभाव के होकर आण्विक स्तर पर एक दूसरे से जुडें हुऐं होकर परस्पर क्रिया करते है। ये दोनो बल मौलिक ऊर्जा का द्विस्वभाव है, जिसमें अविनाषी सूक्ष्म ध्वनि तरंग सृष्टि की प्राग्वस्था में सर्वप्रथम अवतरित हुई और ध्वनि-प्रतिध्वनि के द्वारा सुषुप्त निष्क्रिय काली मौलिक ऊर्जा को ध्वनि और विस्फोट के साथ सक्रिय किया।
अविनाषी ध्वनि तरंग की सूक्ष्मतम् ईकाई फोनॉन और प्रकाष के सूक्ष्मतम् कण फोटॉन परस्पर क्रिया करते हुऐं एक साथ सीधे बाहर निकले। प्रकाष की विद्युत चुम्बकाय किरणे ध्वनि-प्रतिध्वनि और स्पंदन के साथ गति करती है, जैसे नृत्य करते हो। स्वर-तरंग और प्रकाष के सूक्ष्मतम कण फौटॉन एक समानुपाती विपरीत अनुर्द्धेय तरंग द्वारा जुडे हुए है, और आण्विक स्तर पर स्वर-तरंग इलेक्ट्ान विस्थापन के द्वारा क्रिया को प्रेरित करती है, और फोटॉन का संष्लेषण, और विघटन आईंस्टीन के उष्मा सम्बंधी सिद्धान्त के अनुसार चक्रिय रूप मे होता है। यह आक्सिकरण, और अवकरण अनन्त श्रंखला के साथ चक्रिय रूव मे क्रयाओं का सम्पादन करता है, और सृष्टि मे संतुलन का पर्याय है।
पदार्थो के प्रतिपदार्थ
समस्त मलभूत कण पदार्थो का प्रतिपदार्थ होता है, समस्त मूलभूत कण, म्युन, क्वार्क, हेड्ान आदि ध्वनिए और स्पंदन के द्वारा गति करते है, ये अपनी समानुपाती विपरीत अनु;ेर्य तरंग से ध्वनि-प्रतिध्वनि से जुडे हुए है, जिसके समानुपाती स्वर से प्रतिध्वनि द्वारा जुडे रहते है, जो उन्हू आधार प्रदान करती है, जो उसका प्रतिपदार्थ है। सहआण्विक कणो से परमाणु का निर्माण परस्पर फोटॉन- फोनॉन अंतरक्रिया द्वारा अस्तित्व का प्राथमिक चिन्ह है। समस्त मूलभूत कण अपने स्पंदन की ध्वनि- प्रतिध्वनि और सम्बंधित आवेष के साथ गति करते है। ये परस्पर पूरक अनुर्द्धेय तरंग द्वारा गामा किरणो से लेकर रेडियो तरंग तक सम्बंधित है।
जीवन की उत्पत्ति
प्युरीन और पायरीमिडीन क्षार इलेक्ट्ान विस्थापन से घनघोर भयंकर उष्मा उत्पन्न होती है, इस अतिउच्च तापक्रम पर कार्यषील ऊर्जा और समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग के संयोग से इक्ट्ान के विस्थापन द्वारा डीएनए के के क्षार प्युरीनए और पायरीमिडीन क्षार, जिनमे सिर्फ नायट्ोजन का अंतर होता है, का निर्माण हुआ, जो जीवन का घट-कुम्भ्भ है, जो अतिगर्म गैस पिण्डो के साथ अपनी समानुपाती विपरीम अनुर्द्धेय तरंग से जुडे हुए बंदुक की गोली के समान चारो दिषाओं में फैले । गैस पिण्डो के ठझ होने पर सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रह-नक्षत्र अस्तित्व में आए,।
नेबुलां मे विस्फोट और ग्रह-नक्षत्र प्रकाष और ध्वनि सूमानान्तर समान विपरीत अनुर्द्धेय तरंग के साथ गर्म गैस पीण्ड, चारो दिषा मे तीव्र गति से बहे, गर्म गैस पिण्डो से सूर्य की अंतर्कक्षा मे ग्रह-नक्षत्र बने, प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र अपने अक्ष पर गति करते है, और उनमे चुम्बकीय क्षेत्र और चुम्बकीय आवरण विकसित होता है, जो सूर्य के प्रचण्ड चुम्बकीय क्षेत्र से उनकी रक्षा करता है, और समस्त ग्रह-नक्षत्र सुर्य के चारो तरफ परिक्रमा करते है। समस्त ग्रह-नक्षत्र अंतग्रहिय चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा एक दूसरे से अंतर्सम्बंधित है। जो पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करते है,।
सृष्टि की प्राग्वस्था में उच्च तापक्रम पर निर्मित प्युरीनए और पायिडिन क्षार मे सिर्फ नाईट्ोजन का अंतर होता है, और ये हवा में विभक्त होते है, जैसे कॉंच में छवि, ये परा र्बंगनी किरणो के प्रति अति स्ंवेदनशील है। पृथ्वी पर जीवन वायुमण्डल में उपस्थित ओजोन पर्त के कारण है, हो जो सूर्य से आने वाली घातक पराबैंगनी किरणो को अवषोषित कर द्दष्य सफेद प्रकाष को मार्ग देती है। सफेद प्रकाष की सात विद्युत चुम्बकीय किरणे स्पंदन और ध्वनि के द्वारा गति करती है। अविनाषी षब्द-स्वर फोनॉन और प्रकाष के सूक्ष्मतम कण फोटॉन परस्पर ध्वनि-प्रतिध्वनि के द्वारा आण्विक स्तर पर क्रिया करते है। ये सात किरणे पृथ्वी पर पंच महाभूत के साथ जीवन की कारक है, जो जीवन के साथ असंख्य धाराओं मे बह रही है। प्रकाष की सात किरणे और स्वर-तरंग के सात स्वर एक दूसरे के समानुपाती, और पस्स्पर विपरीत अनुर्द्धेय तरंग द्वारा आण्विक स्तर पर स्म्बंधित है। स्वर-तरंग का एक तरंग डीएनए के न्युक्लियेटाईड क्षार को अपनी विपरीत अनुर्द्धेय तरंग द्वारा ईलेट्ान विस्थापन द्वारा उत्प्रेरित करती है, और अपनी विपरीत अनुर्द्धेय तरंग द्वारा डीएनए क्षार से इलैक्ट्ान विस्थापन, एवं अर्ध घुमाव द्वारा समानुपाती तरंग में इलेक्ट्ान विस्थापन द्वारा प्ररित और जीवन पर्यंत संचालित करती है।
यह रूवर-तरंग प्रथम डीएनए ट्ीपतेट रांकेत, और प्रथम अमिनो एसिड की श्रंखला से प्रोटीन का संष्लेषण संवांद प्रक्षेपण ट्ांसक्रिप्षन और समय के साथ अनुवाद डीएनए के विभाजन के साथ जीवन पर्यंत चलता रहता है, जिसे भोज्य पदार्थ की प्यापचय ऊर्जा ए.टी.पी, गति प्रदान करती है। डीएनए न्युक्लियोटाईड क्षार अविनाषी, लस-लसे द्रव में प्रथम जीवन की किरण के साथ, पीढी दर पीढी समानुपाती, अविनाषी षब्द स्वर नए जीवन के साथ स्वागत करते है।
डीएनए क्षार, और समानुपरती स्वर तरंग से जीवन का विकास भिन्न-भिन्न परिस्थियो के अनुसार भिन्न- दिषाओं मे जीवन का विकास हुआ, और षब्द-विचार का विकास हुआ। अविनाषी स्वर-षब्द कान से टकराकर पलट जाते है, और कांषा झिल्ली इलैक्ट्ान विस्थापन, और समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग में अंर्ध घुमाव द्वारा परिवर्तन करत है, और सूचना तुरन्त विद्युप स्पंदन से दिमाग मे विचारो को कार्य हुतु प्ररित करती, जो मुहॅं से षब्द और क्रिया के रूप मे दिखाई देता है।
उपसंहार
वाक् एकीकृत महाबल हैए जो सर्व प्रथम सृष्टि की उत्पत्ति के समय उत्पन्न हुआए ध्वनि तरंगो के डार्क मैटर पर प्रति दबाव से महा विस्फौट हुआ। जिसने विस्फोट के साथ ध्वनि प्रति ध्वनि के द्वारा डार्क मैटर ऊर्जा को क्रियाशील कियाए यह अविनाषी बल अपनी विपरीत अनुर्द्धेय तरंग मे इलेक्ट्ान विस्थपन द्वारा क्रिया करता है और सर्वत्रा व्याप्त होकर सबको धारण करता है। वेद विज्ञान के अध्येता डॉ. सी.पी.त्रिवेदी अपनी कर्म भूमि रत्नललाम और जनता के असीम स्नेह को देते है कि रतलाम वासियों के स्नेह उनकी प्रार्थना से मौत के मुहॅ से वापस आया। यह भी कहा की जिस स्थांतरण को मैने इप्छा विरुद्ध दण्ड समझा वह अमृत बनकर भिण्ड मे मिला, जो सिंधु-घाटी मोहरो पर चित्रा लिपी से सम्बंधित था, और मै जिस कार्य से निराष हो चुका था, उसका सुत्रा मिला। भ्ण्डि विधायक नरेन्द्र सिंह कुषवाह ने प्रस्ताव दिया कि आप एक प्रार्थना पत्रा दे दे, आपकी सेवा काल मे अतिरिक्त वृद्धि हो जाएगी, मैने यह कह कर मना कर दिया कि अब मुझे अपना कार्य पूर्ण करना है। और मै दिन-रात अपने कार्य में व्यस्त हो गया रतलाम को समर्पित अपने कार्य को इन षब्दो मे अभिव्यक्त किया ।
तेरे मंदिर का हूॅं दीपक जल रहा,
आग जीवन मे भर जल रहा।
कया तु मेरे दर्द से अनजान हे,
तेरी मेरी आवाज ही पहचान है।