Raag Ratlami Local Election – बडी अदालत के फैसले के बाद,टिकट की जमावट में जुटे है तमाम नेता
-तुषार कोठारी
रतलाम। मुल्क की सबसे बडी आदालत ने सबसे छोटी सरकारों यानी गांव और शहर की सरकारों के चुनाव का रास्ता साफ कर दिया है। बडी अदालत ने पिछडे हुओ को पिछडा मानने से साफ इंकार करते हुए सरकार को साफ साफ हुक्म सुना दिया है कि अब पिछडों के नाम पर सीटें रिजर्व नहीं होगी। केवल दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षण होगा। अदालती फैसले ने जहां सरकार और पार्टियों की नींद हराम कर दी है,वहीं शहर गांव के नेताओं के दिल अब बल्लियों उछलने लगे है। चुनाव होंगे तभी तो उनकी नेतागिरी चलेगी। सरकार और पार्टियों को दूसरी कई तरह की चिंताएं है,मगर चुनाव लडने और जीतने की उम्मीदें लगाकर बैठे नेताओं के लिए इससे ज्यादा खुशी की कोई बात नहीं हो सकती। जैसे ही अदालत ने फैसला सुनाया,तमाम नेता अपने अपने जोड बाकी लगाने में जुट गए। वे जानते है कि अगर चुनाव हुए तो उन्हे वक्त बहुत कम मिलने वाला है।
सूबे की सरकार फूल छाप पार्टी चला रही है। ना तो मामा और ना फूल छाप के दूसरे बडे नेता दिल से चाहते थे कि चुनाव हो। वे चाहते थे कि चुनाव टल भी जाए और उनके माथे ठीकरा भी ना टूटे। इसीलिए वे चाहते थे कि अदालत चुनाव रोकने का आर्डर देदे। सूबे की बडी अदालत ने तो ऐसा कर दिया था,लेकिन मुल्क की सबसे बडी अदालत ने तो बाकायदा सरकार को फटकार लगा दी है कि चुनाव टालने की कोशिश ना करे। दूसरी तरफ पंजा पार्टी के बडे नेता भी दिल ही दिल में यही चाहते थे कि चुनाव ना हो,लेकिन इसका ठीकरा फूल छाप के माथे फोडने का मौका भी मिल जाए।
लेकिन दोनो ही पार्टियों की तमन्नाएं धरी की धरी रह गई और अब चुनाव कराना उनकी मजबूरी हो गई है। चुनाव होना है,तो गांव से लेकर शहर तक के तमाम नेता,सुबह सवेरे आईने में खुद को निहारने लगे है कि पंच,सरपंच या पार्षद जीतने पर वे कैसे नजर आएंगे। कुरते पायजामें सिलवाने की तैयारियां भी होने लगी है। नेता ये हिसाब लगाने में भी जुट गए है कि टिकट लेने के लिए किस बडे नेता के चरण चुम्बन करना पडेंगे और किसकी परिक्रमा करना पडेगी।
इधर बडा सवाल अब प्रथम नागरिक के चुनाव का खडा है। पंजा पार्टी ने प्रथम नागरिक के चुनाव का अधिकार आम लोगों से छीनकर पार्षदों को दे दिया था। जैसे ही फूलछाप पार्टी सत्ता में आई,उन्होने इसे बदल दिया था,लेकिन ये बदलाव स्थाई नहीं हो पाया था कि इसी बीच अब चुनाव कराने की मजबूरी आ गई। फूल छाप पार्टी कह रही है कि प्रथम नागरिक का चुनाव तो सीधे जनता से ही कराया जाएगा। फूल छाप और पंजा पार्टी दोनो ही कह रही है कि अदालत ने पिछडो को पिछडा मानने से भले ही इन्कार कर दिया हो,पार्टिया अपने स्तर पर पिछडों को उनका हक देकर रहेगी।
रतलाम के प्रथम नागरिक का पद पिछडे वर्ग के लिए आरक्षित होने वाला था,लेकिन ये सारी कहानी तो धरी रह गई थी। अब शहर के पिछडे नेताओं को पूरी उम्मीद है कि कानूनन भले ही प्रथम नागरिक का पद आरक्षित ना हो लेकिन उनकी पार्टी अपने स्तर पर तो आरक्षण देगी ही। बस इसी उम्मीद के सहारे फूल छाप पार्टी के तमाम पिछडे नेता दण्ड बैठक पैलने लगे है। एक अनार और हजार बीमार वाली मसल है। पिछडे नेताओं की भरमार है। कोई अखाडे में दण्ड बैठक पैलने के बाद राजनीति के अखाडे में उतरा है,तो किसी को पिछली नगर सरकार में अध्यक्षता करने का गुमान है। इसी तरह के तमाम नेता दावेदार बन रहे है। ये तय है कि आने वाले दिन सियात के लिहाज से बडे दिलचस्प रहेंगे।
सख्ती ने सम्हाला हालात को….
हफ्ते का आखरी दिन बहुत बुरा साबित हो सकता था,लेकिन इंतजामिया की सख्ती ने हालात को सम्हाल लिया। रविवार की सुबह ही मनहूस खबर लेकर आई थी कि असामाजिक तत्वों ने गौवंश को काट कर उसके अवशेष इधर उधर फेंक दिए है। इतना ही नहीं सांप्रदायिकता भडकाने के इच्छुक इन उपद्रवियों ने गौवंश के अवशेष भेरु जी के एक मन्दिर के सामने भी डाले थे। इस हरकत का जो असर होना था,वहीं हुआ। जबर्दस्त गुस्सा भडका। बजरंगियों ने चिलचिलाती धूप में तीन घण्टे तक चक्काजाम कर दिया। वर्दी वालों और इंतजामियां ने आक्रोशित लोगों को भरोसा दिलाया था कि शाम तक इस मामले को अंजाम तक पंहुचा दिया जाएगा। वर्दीवालों ने जबर्दस्त तेजी दिखाते हुए गौवंश काटने वाले जेहादियों को शाम होने के पहले ना सिर्फ ढूंढ निकाला,बल्कि उनमें से दो को तो कब्जे में भी ले लिया। इतना ही नहीं शाम को इनके घरों पर बुलडोजर भी चल गए। इंतजामियां की इस कार्रवाई के बाद अब जहां लोगों को सुकून मिला है,वहीं ऐसी हरकतों में शामिल रहने वालों के लिए साफ साफ संदेश भी है कि इस तरह की हरकत के बाद अब कोई बच नहीं सकता।
बडे साहब की नई चुनौती
दो दिन पहले तक किसी को अंदाजा भी नहीं था कि जिला इंतजामिया के बडे साहब को अचानक रतलाम से खरगोन भेज दिया जाएगा। खुद बडे साहब को भी शायद ये पता नहीं होगा कि उन्हे अब नई चुनौती से निपटना होगा। बडे साहब को रतलाम आए अभी साल भर ही हुआ था। हांलाकि उन्हे रतलाम भी एक बडी चुनौती से निपटने के लिए ही भेजा गया था। कोरोना के बेकाबू हो चुके हालातों में उन्हे हालात सम्हालने की चुनौती देकर भेजा गया था और उन्होने बखूबी इस चुनौती को स्वीकार किया। रतलाम आकर उन्होने महज एक पखवाडे के भीतर हालात को काबू में कर लिया था। उधर खरगोन में पिछले दिनों दंगों के हालात बने थे। दंगों के हालात भी बैकाबू हो गए थे और अब भी वहां की स्थितियां पूरी तरह सामान्य नहीं हुई है। यही वजह है कि रतलाम के बडे साहब को अब खरगोन की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि उनके जाने की खबर से शहर के जमीनखोरों को बडी राहत मिली है। जमीनखोरों को आस बन्धी है कि शायद अब स्थितियां बदलेगी। दूसरी तरफ शहर के आम लोगों में इस बात को लेकर कुछ निराशा सी है कि साहब ने विकास के जिन कामों को शुरु किया था,वे आगे भी चालू रहेंगे या नहीं?