May 18, 2024

दो वाक्य और भारत का भविष्य

(गांधी जयन्ती पर विशेष)

-डॉ.डी एन.पचौरी

किसी व्यक्ति के वचनों का प्रभाव उसके व्यक्तित्व,पद,प्रतिष्ठा और आयु के अनुसार होता है। जैसे परिवार के मुखिया के बोलने और निर्णय लेने से परिवार और पारिवारिक रिश्ते प्रभावित होते है। सरपंच व मेयर के निर्णय से गांव तथा शहर के मुख्यमंत्री से प्रदेश और प्रधानमंत्री के वचनों से पूरा देश प्रभावित होता है। भारत छोडो आन्दोलन का जमाना था,जब भारत की आजादी की नौका भ्रम के भंवर में हिचकोले खा रही थी,कि अंग्रेज कब इस देश को आजादी देंगे। देंगे भी या नहीं? उस समय नौका के खेवनहार या मांझी गांधी जी थे और पूरा देश गांधी जी,नेहरुजी,सरदार पटेल,राजेन्द्र प्रसाद आदि की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा था कि ये ही इस देश की नैय्या पार लगाएंगे। उस समय गांधी जी द्वारा बोला गया एक वाक्य जैसे ब्रम्ह वाक्य था,जिस पर पूरा देश मर मिटने को तैयार था। ऐसे समय गांधी जी का कुछ भी कहना बहुत मायने रखता था। सन १९४१ में गांधई जी ने कहा कि नेहरु मेरा राजनीतिक उत्तराधिकारी होगा। इस वाक्य से नेहरु जी का भविष्य भले ही सुरक्षित हो गया हो किन्तु कांग्रेस के अधिकांश सदस्य हतप्रभ रह गए थे।

इसका कारण था कि कांग्रेस की पीसीसी समिति के अधिकतर क्या लगभग सभी सदस्य नेहरु की जगह सरदार पटेल को अधिक पसंद करते थे। सन १९४६ में कांग्रेस के अधिवेशन में जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव की बारी आई तो साथ में यह भी निर्णय लिया गया कि आजादी मिलने पर अध्यक्ष ही प्रधानमंत्री पद सम्हालेगा। अत: सभी सदस्य सरदार पटेल को अध्यक्ष के रुप में पसंद कर रहे थे किन्तु नेहरु जी को आपत्ति थी। अत: श्री पटेल और नेहरु के बीच चुनाव हुआ। प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के १६ में से १५ ने चुनाव में भाग लिया तो सरदार पटेल को १३ और नेहरु जी को मात्र २ वोट मिले। कहां १३ और कहां २ वोट? किन्तु नेहरु जी को उपाध्यक्ष और भविष्य में उपप्रधानमंत्री बनना मंजूर नहीं था। अत: उन्होने गांधी जी पर दबाव डाला  और गांधी जी ने नेहरु जी को अध्यक्ष बनवाया। देखा जाए तो इस देश में पहले ही कदम पर प्रजातंत्र की हार हो गई। कहा जाता है कि नेहरु जी ने गांधी जी को कहा था कि यदि उन्हे अध्यक्ष पद नहीं मिला तो वे अपनी अलग कांग्रेस पार्टी का निर्माण कर लेंगे। गांधी जी डर गए कि यदि दो कांग्रेस हो गई तो अंग्रेजों को मौका मिल जाएगा कि हम कौनसी कांग्रेस को इस देश की सत्ता सौंपे? पटेल वाली या नेहरु वाली?और इस बहाने आजादी देने का निर्णय टाल जाते। अत: गांधी जी ने नेहरु जी को अध्यक्ष बनवाया। वे नेहरु जी को अपना उत्तराधिकारी तो घोषित कर ही चुके थे। अंग्रेजों के साथ जो समझौता हुआ था उसके अनुसार इस देश की बागडोर २६ जनवरी १९४८ को सौंपी जानी थी अर्थात स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त न होकर २६ जनवरी होता,किन्तु विभाजन और दंगों की आशंका से अंग्रेज भी जल्दी से जल्दी पीछा छुडाना चाहते थे,अत:१५ अगस्त को ही आजादी प्रदान कर दी गई। गांधी जी इतनी जल्दी न करके कुछ समय इन्तजार कर सकते थे कि नेहरु जी क्या करते है? वैसे भी अधिकांश कांग्रेसी नेहरु जी के साथ जाने वाले नहीं थे। सरदार पटेल गांधी जी का इतना आदर करते थे कि उन्होने उनकी आज्ञा शिरोधार्य करके उपाध्यक्षपद और आजादी के बाद उपप्रधानमंत्री बनना मंजूर कर लिया। सोचिए कि कितना बडा दिल था उनका कि लगभग सभी समिति सदस्य उनके साथ थे और वे आराम से प्रधानमंत्री बन सकत्ते थे,किंतु बापू के एक इशारे पर उन्होने इतना बडा पद छोड दिया। यदि सरदार पटेल इस देश के प्रधानमंत्री बनते तो कुछ और बात होती किन्तु इस देश का दुर्भाग्य कि वे भी आजादी के ३ वर्ष बाद ही दिवंगत हो गए। उन्होने ३ वर्ष में जो किया वो कोई दूसरा तीस वर्ष में भी नहीं कर सकता था। आज कम से कम भारत में हैदराबाद,जूनागढ,भोपाल जैसे पाकिस्तान नहीं बने है। स्पष्ट
है कि गांधी जी के एक वाक्य कि नेहरु मेरा उत्तराधिकारी होगा ने इस देश के भविष्य को कितना असुरक्षित बनाया यह आप चीन के आक्रमण और काश्मीर समस्या के रुप में देख चुके है।
दूसरा वाक्य जिससे देश की राजनीति ही नहीं देश की भावी पीढियों की सुरक्षा को भी प्रभावित किया। वह स्वयं नेहरु जी के मुखारविन्द से निकला। आजादी के बाद एक पत्रकार वार्ता में पंडित नेहरु ने कहा था कि शिक्षा की दृष्टि से मैं यूरोपियन हूं,विचारों की दृष्टि से मैं अन्तर्राष्ट्रिय हूं,सभ्यता कऔर संस्कृति की दृष्टि से मैं मुसलमान हूं,संयोग से हिन्दू हूं,क्योकि मेरे मां बाप हिन्दू थे। इसके अलावा हिन्दुत्व के नाम पर मेरे पास कुछ भी नहीं है। इससे बडा दुर्भाघ्य क्या होगा कि जिस देश की ८५ प्रतिशत जनता हिन्दू हो वहां का प्रथम प्रधानमंत्री स्वयं को मुस्लिम घोषित करे। बोलचाल की भाषा में भी नेहरु जी अधिकतर उर्दु भाषा का ही प्रयोग करते थे। यदि विश्वास न हो तो उनका प्रथम भाषण जो संसद में दिया गया था,उसके कुछ अंश देखिए-
कितने बरस हुए कि हमने किस्मत से एक वायदा किया था,एक प्रतिक्षा की थी कि अब वक्त आया है कि हम उसे पूरा करे। चंद मिनटों में यह असेम्बली पूरी तौर से आजाद,खुदमुख्तार एसेंबली होगी,जो नुमाइंदगी करेगी एक आजाद मुल्क की। चुनांचे इसके उपर एक जबर्दस्त जिम्मेदारी है। याद रखे आजादी महज एक सियासी चीज नहीं है।
उधर जिन्ना ने घोषित किया कि हमारा राष्ट्र इस्लामी राष्ट्र होगा। कुरान हमारी जिन्दगी का कोड है जो हमारी हर बात का यहां तक कि ताजिन्दगी पैदा होने से मरने तक हर बात की नुमाइंदगी करता है।
नतीजा क्या हुआ? आपके सामने है कि पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र बन गया। १९४७ में बंटवारे के समय भारत में २२ प्रतिशत मुसलमान और पाकिस्तान में २२ प्रतिशत हिन्दू थे। आज क्या हालात है? आज पाकिस्तान में मात्र १.२ प्रतिशत हिन्दू  और बांग्लादेश में ९ प्रतिशत हिन्दू शेष बचे है। पाकिस्तान में ५०० हिन्दू मन्दिर थे जो अब केवल २५ रह गए है। इसके विपरित भारत में मुसलमानों की संख्या २२ प्रतिशत से बढकर ३० से ३७ प्रतिशत पंहुच गई है। भारत में पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान है और वहां से ज्यादा सुखी और समृध्द है। प्रथम प्रधानमंत्री से लगाकर वर्तमान प्रधानमंत्री तक सब इन्हे खुश करने में लगे रहते है। वर्तमान प्रधानमंत्री तो सेना में और शासकीय सेवाओं में इनके आरक्षण का मुद्दा उठाते ही रहते है।
काश कि भारत के मुसलमान वतनपरस्त हो जाए। इस देश की मिट्टी से जुड जाए और इसे अपना मादरेवतन समझ कर देश की तरक्की में हाथ बढाए तो फिर कोई समस्या ही नहीं रहेगी।

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