April 26, 2024

डॉ.आम्बेडकर की स्पष्टवादिता

(डॉ.आम्बेडकर जयन्ती पर विशेष)

-डॉ.डीएन पचौरी

महापुरुष अपने देश की महान सेवा करते है,लेकिन निश्चय ही किसी न किसी समय वह अपने देश की प्रगति में बहुत बडी बाधा भी बन जाते है। मिस्टर गांधी इस देश के लिए सचमुच खतरा बन गए थे। उन्होने सारे विचारों को अवरुध्द कर दिया था।  क्या आप बता सकते है कि ये किसके विचार हो सकते है? ये विचार डॉ.आम्बेडकर ने गांधी जी के निधन के पश्चात व्यक्त किए थे। ये कटुसत्य और यथार्थ के निकट है। डॉ आम्बेडकर स्पष्टवादी थे। वे निडर,निर्भीक और नि:संकोच अपनी बात कहते थे।

उन्होने कटु शब्दों में कांग्रेस और गांधी जी के बारे में अपनी राय व्यक्त की थी। उन्होने कहा था-
गांधी जी उस कांग्रेस को संगठित रखे हुए थे,जो समाज के सभी बुरे और स्वार्थी तत्वों  से मिलकर बनी है। जो केवल गांधी जी की प्रशंसा और चापलूसी करने के अलावा समाज के जीवन को प्रभावित करने वाले किसी सामाजिक या नैतिक सिध्दान्त पर सहमत नहीं होते। ऐसी पार्टी देश पर शासन करने के योग्य नहीं है। जैसा कि बाइबिल कहती है कि हर बुराई में से अच्छाई निकलती है,इसी तरह मुझे लगता है कि मिस्टर गांधी की मृत्यु से कुछ अच्छा निकलेगा। इससे लोगों को महामानव की दासता से मुक्ति मिलेगी। इससे उन्हे अपने बारे में सोचना पडेगा,जिससे उन्हे अपनी योग्यताओं पर खडा होने का दबाव पडेगा।
डॉ आम्बेडकर की बात बिलकुल सही थी कि गांधी जी के पश्चात अनेकों समस्याएं स्वत: सुलझ गई। जैसे कि गांधी जी के जीवित रहते हैदराबाद,जूनागढ,गोवा को जबर्दस्ती भारत में विलय का विरोध होता और दो पाकिस्तान हैदराबाद और जूनागढ बन जाते। गांधी जी चाहते थे कि रक्षा खर्च में कटौती की जाए,भारतीय प्रशासनिक सेवा में अधिकारियों की नियुक्तियां न करके यह कार्य स्वयंसेवकों को दिया जाए। उनके विचार पुराने पड चुके थे और जिन्दा रहते तो नेहरु पटेल और गांधी जी में तीखी बहसें हुआ करतीं। इतना ही नहीं 8 या 9 फरवरी  1948 को गांधी जी पाकिस्तान की यात्रा पर जा रहे थे और पाकिस्तानियों के दबाव में एक या दो बडी मांगे मानकर भारत के सामने समस्या खडी करते,जैसे कि उन्होने पाकिस्तान को 55 करोड दिलाने की जिद पकडी और यह रकम पाकिस्तान को दिलवाए भी। खैर नियति को जो मंजूर था,वह हुआ।
डॉ.आम्बेडकर का नाम आते ही आरक्षण का मुद्दा ध्यान में आता है,किन्तु अधिकांश लोगों को नहीं पता कि बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर आरक्षण के प्रबल विरोधी थे। जब संविधान लिखा जा रहा था तो गांधी जी के अलावा नेहरु,पटेल,आम्बेडकर तथा राजेन्द्र बाबू प्रमुख थे। आरक्षण को आम्बेडकर जी ने बैसाखी,जो लंगडे लोगों को सहायता के लिए दी जाती है,कहकर ठुकरा दिया था। उनका कहना था कि आरक्षण से दलितों के अपने पैर पर खडे होने की क्षमता बाधित होगी और योग्यता विकास पर अंकुश लगेगा। अनुसूचित जातियों और जनजातियों को आरक्षण दिए जाने पर आम्बेडकर जी ने सबसे ज्यादा एतराज उठाया और बडी मुश्किल से दस वर्ष तक आरक्षण दिए जाने पर राजी हुए। पर यही आरक्षण राजनीतिज्ञों की वोट बैंक बना हुआ है और सभी पार्टियां आरक्षण की आग पर राजनीतिक रोटियां सेंक रही है। वीपी सिंह ने मण्डल कमीशन लागू करके सैकडों छात्रों की हत्या करवा दी और महीनों स्कूल कालेज बन्द रहे। जाट आरक्षण  ने रेलवे का करोडों का नुकसान करवाया है। आरक्षण से दलितों का उत्थान तो अधिक नहीं हुआ किन्तु मायावती,लालू,शरद यादव और भी कई अरबपति बन गए। आरक्षण के निकट भविष्य में समाप्त होने की कोई संभावना नहीं दिख रही है।
ये बात भी सही है कि दलितों पर अत्याचार भी बहुत हुए है और डॉ.आम्बेडकर की उत्पत्ति इस प्रतिक्रिया का ही परिणाम है। दलित अत्याचार से आम्बेडकर इतने व्यथित थे कि अपनी मृत्यु के लगभग बीस वर्ष पूर्व 1935-36 में उन्होने प्रतिज्ञा की थी कि मैं पैदा दलित अवश्य हुआ हूं किन्तु दलित के रुप में मरुंगा नहीं। जब 1956 में उन्हे लगने लगा कि शरीर दिनों दिन कमजोर होता जा रहा है और अधिक दिन नहीं बचे हैं,तो उन्होने अक्टूबर 1956 में अपने लगभग दो लाख अनुयायियों के साथ बौध्द धर्म ग्रहण कर लिया। इसके लगभग दो माह बाद उनका निधन हो गया। जरा सोचिए कि बौध्द धर्म ग्रहण करके उन्होने हिन्दुओं पर कितना उपकार किया क्योंकि उनपर इस्लाम ग्रहण करने का दबाव भी बना हुआ था और ऐसा हो जाता तो क्या होता…..?

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