सूचना के अधिकार से डरे कारपोरेशन बैंक के अधिकारी
सूचनाएं छुपाने के लिए कानून को रखा ताक पर
रतलाम,11 जुलाई (इ खबरटुडे)। सार्वजनिक संस्थाओं में पारदर्शिता लाने के लिए देश में सूचना का अधिकार अधिनियम लागू किया गया है। अनियमितताएं करने वाले सरकारी कर्मचारी अधिकारी इस अधिनियम से बेहद घबराते है। अनियमितताएं करने वाले अधिकारी इस कानून की धज्जियां उडाने से भी बाज नहीं आते। राष्ट्रीयकृत बैंक की श्रेणी में आने वाले कारपोरेशन बैंक के अधिकारी तो इस मामले में एक कदम और आगे बढ गए। सूचनाएं छुपाने के चक्कर में उन्होने कई गलतियां की।
सूचना के अधिकार अधिनियम से छेडछाड का यह अनोखा मामला रतलाम निवासी किशोर सिलावट के एक आवेदन के मामले में सामने आया। किशोर सिलावट ने दिनांक 24 मई 2013 को कार्पोरेशन बैंक के भोपाल स्थित लोक सूचना अधिकारी बी मोहनदास को स्पीड पोस्ट द्वारा एक आवेदन प्रस्तुत किया था। इस आवेदन में किशोर सिलावत ने बैंक की रतलाम शाखा को कार्यालयीन व्यय हेतु आवंटित राशि के सम्बन्ध में जानकारी मांगी थी। किसी सार्वजनिक उपक्रम के कार्यालय व्यय के रुप व्यय की गई राशि निश्चित रुप से गोपनीय जानकारी की श्रेणी में नहीं आती है। लेकिन आर्थिक घोटालों की सर्वाधिक संभावनाएं भी इसी राशि में होती है। चूंकि कार्पोरेशन बैंक की रतलाम शाखा में भारी आर्थिक अनियमितताओं की आशंका है इसलिए आवेदक ने इसकी जानकारी मांगी थी,परन्तु यही जानकारी कार्पोरेशन बैंक के अधिकारियों की घबराहट का कारण बन गई। उन्हे लगा कि यदि उक्त जानकारी सार्वजनिक हो गई तो उनके कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार खुल कर सामने आ जाएगा।
सूचना के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक आवेदन प्राप्त होने के एक माह के भीतर आवेदक को सूचना दे दी जाना चाहिए। परन्तु आवेदन किशोर सिलावट को आवेदन के डेढ माह गुजर जाने के बावजूद कोई सूचना नहीं दी गई। निर्धारित अवधि में आवेदन का प्रत्युत्तर नहीं मिलने पर आवेदक ने अपीलीय अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील भी प्रस्तुत कर दी।
कहानी में रोचक मोड तब आया जब कार्पोरेशन बैंक के ही एक अन्य खातेदार उदित अग्रवाल के पास कार्पोरेशन बैंक के सूचना अधिकारी बी.मोहनदास के हस्ताक्षरों से दिनांक 4 जून को प्रेषित एक पत्र मिला,जिसमें बैंक के लोक सूचना अधिकारी ने उन्हे दिनांक 24 मई को भेजे गए आवेदन को निरस्त करने की सूचना दी थी। मजेदार बात यह थी कि श्री अग्रवाल ने 24 मई को सूचना के अधिकार के तहत कोई आवेदन बैंक को दिया ही नहीं था। 24 मई को किशोर सिलावट ने आवेदन प्रस्तुत किया था।
खोजबीन करने पर ज्ञात हुआ कि कार्पोरेशन बैंक के शाखा प्रबन्धक आरएल बैरवा की विवादित कार्यप्रणाली से बैंक के अनेक खातेदार बेहद परेशान है। इन्ही में से एक खातेदार उदित अग्रवाल ने बैंक शाखा की कुछ जानकारियों के सम्बन्ध में सूचना के अधिकार के तहत आवेदन प्रस्तुत किया था। इसी तरह किशोर सिलावट ने भी पृथक से अपना आवेदन अन्य जानकारी के लिए प्रस्तुत किया था। बैंक के लोक सूचना अधिकारी जानकारियां छुपाने की हडबडी में यही भूल गए कि आवेदनकर्ता कौन है और किसकों जवाब देना है। एक आवेदन कर्ता के आवेदन का जवाब वे दूसरे को देने लगे। अब देखना है कि बैंक के अपीलीय अधिकारी इन अपीलों पर क्या निर्णय लेते है?