December 24, 2024

सिंहस्थ- आस्था की आड में छुपी अव्यवस्था

ujjain traffic

अत्याधुनिक तकनीकों का निकृष्टतम उपयोग,बुरी तरह परेशान हो रहे है यात्री

उज्जैन,17 मई (इ खबरटुडे)। आस्था के चलते सिंहस्थ में धर्मलाभ लेने जा रहे श्रध्दालुओं के लिए शिप्रा में डुबकी लगाना और महाकाल बाबा के दर्शन करना ही जीवन की सफलता है और इसीलिए सिंहस्थ की तमाम अव्यवस्थाएं छुपी रह पा रही है। वरना अच्छी व्यवस्थाओं के तमाम दावों के बावजूद सिंहस्थ,अत्याधुनिक तकनीकों के निकृष्टतम उपयोग और हद दर्जे के घटिया प्रबन्धन का उदाहरण बन कर रह गया है। संचार से लेकर यातायात व्यवस्था तक सबकुछ सिर्फ भगवान भरोसे है और यात्री जला देने वाली धूप में कई किलोमीटर पैदल चलने को अभिशप्त है।

यातना की कहानियां

सिंहस्थ की शुरुआत से लेकर अब तक प्रशासन द्वारा लगातार बेहतरीन व्यवस्थाओं के दावे किए जा रहे है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी व्यवस्थाओं की सराहना करवा ली गई,लेकिन वास्तविकता इससे एन उलट है। सिंहस्थ जाकर लौटने वाले हर यात्री के पास सिर्फ सिंहस्थ के दौरान झेली गई यातनाओं की कहानियां है। सिंहस्थ में जाने वाले यात्रियों को चिलचिलाती धूप में दस दस किलोमीटर पैदल चलना पड रहा है। इ रिक्शा,आटो,निशुल्क बसें उपलब्ध होने के तमाम दावें पूरी तरह झूठे साबित हो रहे है।

व्यवस्था के नाम पर सिर्फ अवरोधक

सिंहस्थ की यातायात व्यवस्था के नाम पर यदि पुलिस ने कुछ किया है,तो सिर्फ इतना कि प्रत्येक मार्ग पर अवरोधक लगा दिए है,ताकि जब चाहे मार्ग को बन्द किया जा सके। इसके अलावा इस व्यवस्था के लिए कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं अपनाया गया। जबकि वर्तमान समय में भीड प्रबन्धन जैसे विषयों पर उच्चस्तरीय वैज्ञानिक व्यवस्थाएं उपलब्ध है। दुनिया में अन्यान्य स्थानों पर होने वाले विशाल आयोजनों में यातायात व्यवस्था के लिए वैज्ञानिक और विशेषज्ञ संस्थाओं से मदद लेकर प्लान तैयार किए जाते है,जिससे कि कम से कम दूरी तय कर इच्छित स्थान पर पंहुचा जा सके। इतना ही नहीं आपात स्थिति में पूरे शहर को कम से कम समय में खाली किया जा सके। ताजा उदाहरण रियो डि जेनेरियो में हुए ओलम्पिक आयोजन का है,जहां लाखों लोगों का प्रबन्धन करने के लिए वैज्ञानिक संस्थाओं की मदद से प्लान बनाकर लागू किया गया था।

अत्याधुनिक तकनीक का निकृष्टतम उपयोग

लेकिन सिंहस्थ आयोजन में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई। कहने को तो चप्पे चप्पे पर हजारों सीसीटीवी कैमरे लगाए गए है,लेकिन इनके आधार पर तत्काल प्लान लागू करने के लिए वैज्ञानिक तौर पर कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं है। टीवी स्क्रीन को सुव्यवस्थित ढंग से मानिटर करने और जहां मार्ग अवरुध्द करने की आवश्यकता हो,सिर्फ वहीं अवरोधक लगाने का कोई प्लान नहीं बनाया गया है। यह अत्याधुनिक तकनीक के निकृष्टतम उपयोग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। पुलिस अधिकारी केवल पारंपरिक तरीकों से भीड को नियंत्रित कर रहे है। इसे प्रबन्धन कतई नहीं कहा जा सकता। पुलिस के पास केवल एक योजना है कि स्नान करने या दर्शन करने आए यात्रियों को बेवजह सड़कों पर घूमाते रहना,ताकि एक स्थान पर भीड जमा ना हो सके। इसके बावजूद भीड भी जमा हो रही है और यात्री भी परेशान हो रहे है। वृध्द और बच्चों तक को बेवजह कई किलोमीटर घूमना पड रहा है।

कुप्रबन्ध का विशीष्ट उदाहरण

कुप्रबन्धन की स्थिति ऐसी है कि बाहर से आ रही गाडियों को उस समय दस किमी दूर रोक दिया जाता है,जब भीतरी क्षेत्रों में भीड का कोई दबाव नहीं होता। स्थिति इतनी दयनीय है कि एकबार तो वाहनों को उज्जैन से पचास किमी की दूरी पर रोक दिया गयाथा,जबकि उस समय उज्जैन पंहुचे अधिकाधिक लोग असमय वर्षा के कारण उज्जैन से निकलते जा रहे थे। यही नहीं वाहनों को बाहर ही रोक दिए जाने और मेला क्षेत्र की सड़कों पर भीडभाड कम होने के बावजूद रोडक्रासिंग पर निरन्तर जाम लग जाते है। इसके पीछे भी वही कारण है। इन ढेर सारी अव्यवस्थाओं और यात्रियों को हो रही दिक्कतों के बावजूद सत्तारुढ पार्टी और प्रशासन अपनी पीठ ठोंकने में व्यस्त है। सुव्यवस्था के दावे किए जा रहे है।

हर यात्री के पास दिक्कतों की कहानी

अपने निजी वाहन से उज्जैन पंहुचने वाले हर यात्री की एक जैसी कहानी है। उसे उज्जैन शहर से दस किमी दूर बनाए गए सैटेलाइट टाउन में रोक दिया जाता है। प्रशासन का दावा है कि हर सैटेलाइट टाउन से मेला क्षेत्र में जाने के लिए निशुल्क बसें उपलब्ध है। गाडी पार्क करवाते समय यही झांसा यात्री को दिया जाता है। वह अपने परिवार सहित गाडी से उतर जाता है और वाहन की आस में चलने लगता है। कुछ दूर जाने पर उसे पता चलता है कि कोई वाहन उपलब्ध नहीं है। उसे अचानक ध्यान आता है कि प्रशासन ने इ रिक्शा और आटो चलने की भी बात कही है। यदि किस्मत से कोई आटो नजर आ गया तो आटोवाला प्रतिव्यक्ति डेढ सौ से दो सौ रुपए मांगता है। बहरहाल आस्था का मारा श्रध्दालु या तो जेब कटवा कर या अपने शरीर को कष्ट में डालकर जैसे तैसे किसी घाट पर पंहुच पाता है। उसके लिए अपने वाहन तक लौटना और भी कठिन होता है।

कष्टों को बढाती है महाकाल दर्शन की आस

इसके बाद यदि श्रध्दालु को महाकाल बाबा के दर्शनों की भी आस है,तो समझिए कि उसके कष्टों में कई गुना का इजाफा होने वाला है। प्रशासन का दावा है कि मात्र चालीस से पैंतालिस मिनट में दर्शन हो जाएंगे। इसी दावे के भरोसे यदि वह महाकाल मन्दिर की तरफ बढता है,तो उसे पता चलता है कि महाकाल मन्दिर के समीप पंहुच पाना भी दुष्कर काम है। महाकाल मन्दिर को जाने वाले सभी मार्ग बन्द कर दिए गए है,केवल हरसिध्दि मन्दिर की तरफ से यानी महाकाल के पीछे की ओर से वह मन्दिर के समीप पंहुच सकता है। गोपाल मन्दिर की तरफ से या किसी अन्य दिशा से आने वाले यात्री को कई किलोमीटर घूम कर पहले हरसिध्दि चौराहे पर पंहुचना होता है,तब वह महाकाल मन्दिर के मार्ग पर पंहुच पाता है।

बदतर कम्यूनिकेशन

जो स्थिति यातायात की है,उतनी ही खराब स्थिति दूरसंचार की भी है। निजी मोबाइल कंपनियों ने सिंहस्थ के लिए अपने स्तर पर पर्याप्त व्यवस्थाएं कर ली थी,लेकिन सरकारी कंपनी बीएसएनएल ने अपनी घटिया गुणवत्ता को सिंहस्थ में भी बरकरार रखा है। सिंहस्थ क्षेत्र में बीएसएनएल के मोबाइल से बात कर पाना किसी आश्चर्य से कम नहीं होता। मोबाइल नेटवर्क के जाम होने के कारण मेले में अपने लोगों से बिछडने वालों की तादाद भी बढ रही है। मोबाइल नेटवर्क जाम होने से लोग आपस में बात नहीं कर पाते। मजबूरन उन्हे पुलिस के पब्लिक एड्रेस सिस्टम की मदद लेना पडती है। बिछुडने वालों के बारे में लगातार होने वाले एनाउन्समेन्ट अन्य यात्रियों के मन में डर पैदा करते है।

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