राष्ट्रसन्तश्री की निश्रा में लगा तपस्याओं का ठाठ
चातुर्मास आयोजक श्री काश्यप के हाथों पारणा व बहुमान
रतलाम 20 अगस्त (इ खबरटुडे)। त्रिस्तुतिक श्रीसंघ के आचार्य का 93 वर्ष बाद चातुर्मास होने से रतलाम में तपस्याओं का ठाठ लग गया है । राष्ट्रसन्तश्री जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में चातुर्मास के दौरान तपस्या की गंगा बह रही है। 200 से अधिक तपस्वी विभिन्न तपस्याएं कर रहे हैं।
मासक्षमण से अधिक तपस्या करने पर शनिवार को चातुर्मास आयोजक एवं विधायक चेतन्य काश्यप ने तपस्वियों का बहुमान कर पारणा कराया। जयन्तसेन धाम में तपस्वियों का सामूहिक पारणा 23 अगस्त को होगा। इससे पूर्व सुबह खैरादीवास स्थित नीमवाला उपाश्रय से सामूहिक चल समारोह निकाला जाएगा। 22 अगस्त को शाम 7.30 बजे प्रभु भक्ति का आयोजन होगा । इसमें दीपक करणपुरिया एण्ड पार्टी अपनी प्रस्तुतियां देंगी।
राष्ट्रसन्तश्री चातुर्मास के लिए जब से रतलाम पहुंचे हैं, तब से कई तपस्वियों ने गर्म जल के आधार पर कठिन तप आराधना शुरू कर दी थी । सिद्धि तप करने वाले 25 से अधिक, मासक्षमण का तप करने वाले 45 से अधिक व सौभाग्य सुन्दर तप करने वाले 75 से अधिक तपस्वियों की तप-आराधना 23 अगस्त को पूर्ण हो जाएगी। कई तपस्वियों द्वारा 21, 16, 11, 9 उपवास व अठाई की तपस्याएं की गई है। चातुर्मास आयोजक एवं विधायक चेतन्य काश्यप परिवार द्वारा तप अनुमोदना के लिए इस दिन भव्य समारोह आयोजित किया जाएगा। सुबह 8.00 बजे खैरादीवास स्थित नीमवाला उपाश्रय से तपस्वियों का सामूहिक चल समारोह निकलेगा जो जयन्तसेन धाम पहुंचकर धर्मसभा में परिवर्तित होगा। राष्ट्रसन्तश्री की निश्रा में तप अनुमोदना समारोह के पश्चात् तपस्वियों का सामूहिक पारणा होगा।
शनिवार को हनुमान रुण्डी में प्रमोद चांदमल बोराणा परिवार की श्रीमती ज्योति, कु. अदिति एवं कु. परिधि-प्रदीप कटारिया का मासक्षमण से अधिक की तपस्या करने पर चातुर्मास आयोजक एवं विधायक चेतन्य काश्यप ने बहुमान किया। उन्होंने चम्पाविहार में सुखराम चांदमल परिवार के दीपक कुमार दुग्गड़ का भी मासक्षमण से अधिक तपस्या करने पर बहुमान कर पारणा करवाया। जयन्तसेन धाम में कई तपस्वियों ने तप-आराधना के प्रत्याख्यान लिए।
तपन के बिना होता है पतन –
राष्ट्रसन्तश्री जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. ने कहा कि तपन के बिना व्यक्ति पतन की ओर जाता है। स्वैच्छा से किया गया तप ही तपस्या की श्रेणी में आता है । चिकित्सक के कहने अथवा मजबूरी में भूखा रहना तप की श्रेणी में नहीं आता, तप के लिए प्रत्याख्यान आवश्यक है। तप कर्मों के बंधन तोडऩे के अलावा मन-वचन-काया और आत्मा को कंचनवान बनाता है। उन्होंने कहा जैन धर्म में तपस्या का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके माध्यम से तपस्वी अपने कर्मों की निर्जरा करता है । कर्म को क्षय करने के बाद ही आत्मा मोक्षपद की राही बनती है । मासक्षमण की महिमा बताते हुए राष्ट्रसन्तश्री ने कहा कि इसे महामृत्युंजय तप भी कहा गया है।