कृषि को लाभ का उद्योग बनाने की पहल स्वागत योग्य
वन विभाग द्वारा आयोजित सेमिनार संपन्न
रतलाम 17 मार्च (इ खबरटुडे)। कृषि को लाभ का उद्योग बनाने की दिशा में वन विभाग की पहल स्वागत योग्य है। मध्यप्रदेश सरकार किसान को उसकी मेहनत का पूरा लाभ मिलना सुनिश्चित करने के प्रति गंभीर है। यह इस तथ्य से जाहिर है कि प्रदेश में पहली बार कृषि केबिनेट का गठन किया गया है और कृषि के लिए पृथक् बजट का प्रावधान भी किया गया है।
यह बात विभिन्ना वक्ताओं ने वन विभाग के अनुसंधान एवं विस्तार वृत्त रतलाम के तत्वावधान में ”कृषि को लाभ का उद्योग बनाने में वानिकी की सहभागिता” विषय पर आयोजित उच्च स्तरीय सेमिनार में अपने विचार व्यक्त करते हुए कही। वक्ताओं ने कहा कि परम्परागत फसलाें के साथ-साथ औषधीय पौधे एवं किसानाें को आर्थिक लाभ प्रदान करने वाले अन्य पौधाें को लगाने के लिए प्रोत्साहन जरूरी है।इस संबंध में वन विभाग की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।
इस अवसर पर प्रधान मुख्य वन संरक्षक रमेश के.दवे ने संबोधित करते हुए कहा कि कृषि को वानिकी के साथ जोड़कर लाभ का व्यवसाय बनाया जा सकता है।भारत अब कृषि के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है। अब जरूरत इस बात की है कि कृषि से आमदनी बढे।संगोष्ठी का उद्देश्य कृषि का उत्पादन कम करना नहीं है वरन् कृषि के साथ वानिकी से अतिरिक्त आमदनी प्राप्त करना है। इसके लिए किसानाें का जागरूक होना जरूरी है।किसान कृषि कार्य के उपयोग में आने वाली भूमि के अतिरिक्त शेष बची भूमि पर वानिकी पौधे लगाकर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते है।इससे पर्यावरण संतुलन भी बनेगा।वनोपज की मार्केटिंग के लिए भी इंतजाम किया जा रहा है। मौसम के समय-समय पर प्रतिकूल होने पर कृषि उत्पादन पर असर पडता है। उत्पादाें के प्रसंस्करण की व्यवस्था हो जाने पर स्थिरता आएगी।प्रसंस्करण के लिए जिला स्तर पर छोटे-छोटे प्रसंस्करण यूनिट लगाने हाेंगे।वनाें की कमी सारे विश्व की चिंता का विषय है।इससे पर्यावरण को बडी तेजी से नुकसान हो रहा है।पर्यावरण को बचाना है तो पौधे लगाना जरूरी है।इससे कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में कमी आएगी। कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए समूह में काम करना होगा।रतलाम में आयोजित सेमिनार के परिणामाें से वे अन्य जिलाें को भी अवगत कराएंगे। उन्हाेंने वनावरण बढाने के लिए मिलकर काम करने के लिए कहा।उन्हाेंने कहा कि सेमिनार में किसानो द्वारा बताई गई समस्याआें का निराकरण किया जाएगा।अपर मुख्य वन संरक्षक एस.पी.सिंह ने किसानो द्वारा स्वयं की भूमि पर उगाए गए वृक्षाें को काटने की अनुमति की प्रयिा बताई।
नीमच के वैज्ञानिक डा.आर.आर.पाटीदार ने कहा कि कृषि के साथ वन को जोड़ें।सीमित संसाधनो में भी किसान मालामाल हो सकता है।किसान को चाहिए कि वे जागरूक होकर कृषि वैज्ञानिकाें और वन विभाग के अधिकारियाें की सलाह पर काम करे।उन्हाेंने किसानाें से जमीन का उचित प्रबंधन करने,पशु पालने, खाली पडी भूमि पर जलाऊ, इमारती और फलदार वृक्ष लगाने के लिए कहा। इस मौके पर आम्बा के किसान डा.राजेन्द्रसिंह राठौर ने कहा कि किसान पहले पेड़ो के साथ खेती करता था किन्तु आज किसानाें ने पेड़ाें को उपेक्षित कर दिया है।खेताें में पहले से मौजूद वृक्षाें को किसानाें ने अनुपयोगी मानते हुए काट दिया वहीं मेढ़ाें के पेड़ाें को भी किसानाें ने नुकसान पहुंचाया है।उन्हाेंने किसानाें से कहा कि विदेशी फसलाें को बिना सोचे-समझे नहीं अपनाएं। सहायक संचालक कृषि ने वृक्षाें को कटने से बचाने के लिए बायोगैस अपनाने का अनुरोध किया।
इस मौके पर आगर के किसान बी.एल.सिसौदिया,जावरा क्षेत्र के किसान धीरजसिंह सरसी,नीमच के किसान रामचन्द्र नागदा,मंदसौर के राधेश्याम धन्ना, नीमच के रमेश,नीमच के ही गोवर्धनलाल तिवारी, राधाकृष्ण रावत,बर्डवाचिंग ग्रुप के राजेश घोटीकर,कृषि विज्ञान केन्द्र कालूखेड़ा के वैज्ञानिक डा.मुस्तफा ने भी अपने विचार रखे।
सेमिनार का शुभारंभ अतिथियाें ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया।सेमिनार के समापन पर मुख्य वन संरक्षक अनिल कुमार श्रीवास्तव ने उपस्थित अतिथियाें एवं किसान बंधुआें के प्रति आभार व्यक्त किया।इस मौके पर सीजेएम पी.के.निगम,उज्जैन वृत्त के मुख्य वन संरक्षक महेन्द्र यादवेन्दु,रतलाम वन मंडल के डीएफओ एस.के.प्लास,नीमच के मनोज अर्गल सहित संभाग के अन्य जिलाें के वन मंडलाधिकारी, कृषि विज्ञान केन्द्र के डा.एस.के.श्रीवास्तव भी उपस्थित थे।