December 29, 2024

मदिरा की बोटलों से तय होता है विवाह

dharchula

उत्तराखण्ड के कुमाऊं  क्षेत्र मे प्रचलित है कई रोचक परंपराएं

रतलाम,18 सितम्बर (इ खबरटुडे)। विवाह तय करने के लिए वर पक्ष के लोग,मदिरा की दो बोतलें लेकर वधु पक्ष के घर पंहुचते है और यदि वधु पक्ष के लोग इस मदिरा को स्वीकार कर इसका पान करते है तो इसका अर्थ यह है कि उन्हे विवाह का प्रस्ताव स्वीकार है। तुरंत ढोल ढमाके बजने लगते है और विवाह की तिथि इत्यादि तय की जाती है।
यह रोचक पंरपरा उत्तराखण्ड के कुमाऊं मण्डल में व्यास,दारमा और जोहार  घाटियों व अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान काफी समय कुमाऊं  मण्डल के गांवों में गुजार कर आए पत्रकार आशुतोष नवाल ने बताया कि कुमाऊं  के पहाडी ईलाकों में रहने वाला समाज अत्यन्त जुझारू प्रवृत्ति का है। दुर्गम ऊं चाईयों पर अत्यन्त विपरित प्राकृतिक परिस्थितियों में जीवन यापन करने के बावजूद ये लोग बेहद जिन्दादिल है और विपरित परिस्थितियों में भी जीवन का आनन्द ढूंढ लेेते है।
इन क्षेत्रों में प्रचलित परंपराएं अत्यन्त रोचक तो है ही,लेकिन साथ ही कई परंपराएं देश के अन्य समाजों के लिए अनुकरणीय भी है। इन पहाडी इलाकों में महिलाओं का स्थान पुरुषों से उपर है,इसलिए यहां नारी प्रताडना या दहेज जैसी कुरीतियां नदारद है।
यहां के जनजीवन में मदिरा का विशेष स्थान है। प्रत्येक घर में गेंहू या जौ से मदिरा बनाई जाती है,जिसे स्थानीय भाषा में चकती कहा जाता है। प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान या मांगलिक कार्य में देवताओं को चकती का भोग लगाया जाता है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में चकती का उपयोग किसी भी प्रकार से बुरा नहीं माना जाता,यहां तक कि धार्मिक या मांगलिक कार्यक्रमों और सार्वजनिक उत्सवों में महिला पुरुष सभी मिल कर चकती का उपयोग करते है।
विवाह की परंपरा बेहद रोचक है। वर पक्ष के लोग चकती की दो बोटलें लेकर वधु पक्ष के यहां पंहुचते है। यदि वधु पक्ष के लोग यह चकती स्वीकार कर लेते है तो इसका अर्थ यह है कि उन्होने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है। यदि वधु पक्ष द्वारा चकती की बोटलों को बिना ग्रहण किए लौटा दिया जाता है तो इसका अर्थ यह है कि उन्हे प्रस्ताव स्वीकार नहीं है। यदि कन्या पक्ष के लोग चकती की बोटलें तो ले लेते है,परन्तु उन्हे खोले बिना रख लेते है,तो इसका अर्थ यह होता है कि प्रस्ताव विचाराधीन है। ऐसी स्थिति में वर पक्ष के लोग किसी अन्य परिवार में विवाह का प्रस्ताव लेकर नहीं जा सकते। प्रस्ताव स्वीकार हो जाने पर विवाह कार्यक्रम निश्चित किया जाता है। विवाह वैदिक रीति से होता है,लेकिन इसके वर पक्ष,विवाह के दिन वधु पक्ष के पितरों की पूजा हेतु एक या दो बकरी काटते है। विवाह में दहेज नामक कोई प्रथा नहीं है।
इन दुर्गम क्षेत्रों में आज भी सड़क सम्पर्क नहीं है और स्थानीय निवासी पैदल ही एक गांव से दूसरे गांव को जाते है,लेकिन शिक्षा के प्रति यहां अनुकरणीय लगन है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। अनेक गांव शत प्रतिशत साक्षर है। शिक्षा के मामले में बालक बालिका में भी कोई भेदभाव नहीं है। यहां की सभी महिलाएं शिक्षित है। उच्च शिक्षा के प्रति भी यहां काफी रूझान है। इन इलाकों से कई उच्च शिक्षित लोग देश की उच्चतम प्रशासनिक सेवा आईएएस और आईपीएस आदि में चयनित हुए है। यहां के अनेक लोग विदेशों में बस गए है।
कुमाऊं के इन जनजातीय लोगों की सबसे बडी विशेषता यह है कि वे उच्च पदों पर पंहुचने के बावजूद अपनी जडों से जुडे रहते है। उच्च प्रशासनिक पदों पर नियुक्त होने या विदेशों में बस जाने के बावजूद वे अपने लोगों और अपनी परंपराओं को भूलते नहीं है,बल्कि उसका पूरा सम्मान करते है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक एक या दो वर्ष में किसी एक गांव में तीन दिवसीय मिलन समारोह आयोजित किया जाता है। इसे एजीएम कहा जाता है। दुनिया के कोने कोने में बसें कुमाऊं के लोग इस एजीएम में शामिल होने के लिए समय निकालकर पंहुचते है। एजीएम के तीन दिवसीय उत्सव में हजारों लोग शिरकत करते है। इस पर होने वाला व्यय भी सभी लोग मिलजुल कर एकत्रित करते है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी सामथ्र्य के अनुसार इसमें सहयोग देता है। हाल ही में नेपाल सीमा में बसे गांव छांगरु में एजीएम का आयोजन किया गया था। इस पर लगभग ६० लाख रु.व्यय हुए। स्थानीय निवासियों के मुताबिक इस एजीएम में भाग लेने के लिए अमेरिका और यूरोप के कई देशों से कुमाऊं के रहवासी पंहुचे थे।

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds