November 23, 2024

मदर की सच्चाई बताने का हक सिर्फ विदेशियों को,भारतीयों को नहीं

-तुषार कोठारी

दुनिया की भयानकतम औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक भोपाल गैस काण्ड में अधिकारिक तौर पर चार हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी और इससे कई गुना ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए थे। दुर्घटना के फौरन बाद करुणा की मूर्ति कोलकाता से भोपाल पंहुची थी। लेकिन वह गैस काण्ड से पीडीत प्रभावित लोगों की मदद के लिए वहां नहीं पंहुची था,बल्कि गैस काण्ड के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के प्रबन्धन की मदद के लिए पंहुची थी। उसने यूनियन कार्बाइड के प्रबन्धन को इस अपराध के लिए क्षमा कर देने का निवेदन किया था। हुआ भी यही। सारे जिम्मेदार बाखुशी भारत से चले गए। मुख्य अपराधी वारेन एण्डरसन ने पूरी जिन्दगी अमेरिका में आराम से गुजारी और भोपाल गैस काण्ड की त्रासदी के लिए उसे कोई सजा नहीं दी जा सकी।
करुणा की वह देवी कौन थी? जिसने जहरीली गैस से प्रभावित पीडीत गरीबों की मदद के बजाय बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के प्रबन्धकों की मदद की। वह करुणा की देवी थी नोबल पुरस्कार से सम्मानित भारत रत्न मदर टेरेसा।
किसी भी कीमत पर कैथोलिक इसाइ धर्म को  फैलाने का एकमात्र लक्ष्य लेकर सेवा करने वाली मदर टेरेसा के बारे में रा.स्वं. संघ प्रमुख डॉ.मोहन भागवत के एक वाक्य ने पूरे देश में बवाल मचा दिया है। कांग्रेस से लेकर वाम दलों तक सभी को इस वाक्य से असीम पीडा हुई है। इतना ही नहीं दिल्ली राज्य के मतदाताओं के दिलों पर छाए नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी इससे बेहद आहत है। वे तो स्वयं कहते है कि वे मदर के साथ काम कर चुके है। लेकिन संघ प्रमुख ने तो मदर के बारे में मात्र एक वाक्य कहा है। मदर का वास्तविक व्यक्तित्व तो इस एक वाक्य से कई गुना अधिक रोंगटे खडे कर देने वाला है।
सन 1931 में ईश्वर की पुकार पर भारत के कोलकाता में पंहुची मेसेडोनिया की अग्रेशे गौंकशे बोजशियू,कोलकाता आकर 1950 में  मदर टेरेसा बनी और उन्होने मिशनरीज आफ चैरिटी की स्थापनी की। प्रत्यक्षत: गरीब और बेसहारा दीन दुखियों की मदद के लिए स्थापित मिशनरीज का ऐसा विस्तार हुआ कि आज दुनिया के 123 देशों में 610 मिशन संचालित है। भारत ने तो उन्हे संत और मां जैसी पदवियों के साथ साथ भारत रत्न तक से नवाजा,लेकिन कई विदेशी पत्र पत्रिकाओं और संवाददाताओं ने उनके इस मिशनरीज के कामों की तह में जाकर टटोला और जो तथ्य निकाले,वे मदर की संतों वाली छबि के ठीक विपरित निकले। भारत के लोगों को तो आज भी सच्चाई सामने लाने में डर लगता है। एक भारतीय अगर मदर की नीयत पर सवाल खडे करता है तो देश भर में बवाल मच जाता है,लेकिन विदेशी पत्रकारों द्वारा खोजे गए तथ्यों पर केजरीवाल या कांग्रेस ने कभी टिप्पणी नहीं की।
मदर को सबसे पहले चर्चित किया अन्तर्राष्ट्रिय ख्याति प्राप्त पत्रकार क्रिस्टोफर हिंचेन्स ने। ङ्क्षहचेन्स ने 1994 में मदर पर एक डाक्यूमेन्ट्री बनाई,जिसमें मदर टेरेसा के तमाम सेवा कार्यों की असलियत खोल कर रखी गई। यह डाक्यूमेन्ट्री ब्रिटेन के चैनल फोर पर प्रदर्शित भी हुई। कोलकाता के अपने अनुभवों के आधार पर हिंचेन्स ने एक पुस्तक हैल्स एंजिल (नर्क की परी) भी लिखी,जो दुनिया की बेस्टसेलर पुस्तक बनी। इस पुस्तक में मदर की तमाम सचाईयों को सामने लाया गया है।
सच्चाईयां भी कैसी? मदर ने अपने कथित सेवाकार्यो कें लिए धोखाधडी करने वाले ठगों,सजायाफ्ता मुजरिमों और गरीबों पर अत्याचार करने वाले तानाशाहों से जमकर चन्दा लिया। धोखाधडी के मामले में साजयाफ्ता चाल्र्स कीटींग से मदर ने 1.25 मिलीयन डालर का चन्दा लिया और जज से कीटींग को क्षमा करने का अनुरोध किया। जज ने पूछा कि गरीब जनता से लूटा गया पैसा क्या मदर लौटाएगी? तब मदर ने चुप्पी साध ली। हैती के तानाशाह जीन क्लाउड डुबालिए से चन्दा लिया तो उसकी तारीफ गरीबों का मददगार के रुप में की। जब मदर की मौत हुई,तो उनके न्यूयार्क बैंक के खाते में पचास मिलीयन डालर की रकम जमा थी। जिस रकम का उपयोग गरीब बेसहारा बच्चों के हित में किया जाना था,वह बैंक में बेकार पडी थी।
मदर द्वारा संचालित अस्पतालों की हकीकत ब्रिटेन की प्रसिध्द मेडीकल पत्रिका लान्सेट ने बताई। लान्सेट के संपादक राबिन फाक्स ने  1991 में मदर के कोलकाता स्थित चैरिटी अस्पतालों का निरीक्षण किया तो पाया कि वहां बच्चों के लिए साधारण एनालजैसिक दवाईयां तक नहीं थी और न ही स्टरलाईज्ड सीरींज का उपयोग किया जा रहा था। जब मदर से इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि बच्चे तो सिर्फ मेरी प्रार्थनाओं से ठीक हो जाएंगे।
मदर की करुणा की कुछ और भी अनोखी कहानियां विदेशी पत्रकारों और पत्र पत्रिकाओं ने उजागर की है। श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा भारत पर थोपे गए जिस आपातकाल की हर भारतीय निन्दा करता है,उसी आपातकाल की मदर ने जमकर तारीफ की थी। मदर ने कहा था कि आपातकाल से लोग खुश है और बेरोजगारी समाप्त हो गई है। मदर के इसी एहसान का कर्जा गान्धी परिवार ने उन्हे भारत रत्न से नवाज कर उतारा था। और यही वजह है कि वे आज तक मदर की सच्चाई सुनना नहीं चाहते।
यही नहीं 1971 में बांग्लादेश युध्द के समय भी मदर ने अनोखी करुणा का प्रदर्शन किया था। इस युध्द में लाखों महिलाएं बेघर हो गई थी और भागकर कोलकाता आ गई थी। इनमें से अधिकांश महिलाओं के साथ बलात्कार किए गए गए थे और वे महिलाएं गर्भपात कराना चाहती थी। लेकिन मदर ने गर्भपात का विरोध किया। उनका कहना था कि गर्भपात कैथोलिक परंपराओं के खिलाफ है और औरतों की प्रैग्रेन्सी एक पवित्र आशीर्वाद है।
भारतीय नहीं,बल्कि विदेशी पत्रकार ही बताते है कि मदर को संत की उपाधि गलत ढंग से कैथोलिक पंरंपंराओं को ताक पर रख कर दी गई थी। मदर जब स्वयं बीमार होती थी,तो उनके ईलाज के लिए महंगे से महंगे अस्पताल और महंगी दवाईयां डाक्टर आदि उपलब्ध होते थे,लेकिन जिन बच्चों के लिए वे करोडों डालर का चन्दा पूरी दुनिया से लेती थी,उन्हे कभी भी ऐसा ईलाज नहीं दिया जाता था। संत बनाने के लिए चमत्कार होना जरुरी था। मदर के चमत्कारिक होने की कहानी भी अत्यन्त चमत्कारिक है।
पं.बंगाल की एक क्रिश्चियन आदिवासी महिला मोनिका बेसरा टीबी और पेट के ट्यूमर से परेशान थी। बेलूरघाट के सरकारी अस्पताल में डॉ.रंजन मुस्ताफ उसका इलाज कर रहे थे और इलाज से वह ठीक हो रही थी। वह बेहद गरीब थी और उसके पांच बच्चे थे। कैथोलिक ननों ने उसके पति से सम्पर्क किया। बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का आश्वासन दिया गया,थोडी जमीन भी दी गई और मोनिका ब्रेनवाश कर दिया गया। अचानक एक दिन मोनिका के गले में मदर का लाकेट आ गया। अब वह पूरी तरह स्वस्थ थी और स्वस्थ होने के लिए मदर के चमत्कारों का वर्णन करने में भी सक्षम थी। जब एक संस्था ने अस्पताल का दौरा कर हकीकत जानने की कोशिश की तो पता चला कि अस्पताल में मोनिका से सम्बन्धित सारा रेकार्ड गायब हो चुका था।
बहरहाल करुणा की देवी और ममतामयी मां  की तमाम करुणा और ममता धर्म परिवर्तन के ही लिए थी। लेकिन इस तथ्य को बोलने बताने का अधिकार भारतीयों को नहीं है। ये तथ्य सिर्फ विदेशी और खासतौर पर ईसाई धर्म से जुडे पत्रकार आदि ही बता सकते है। भारतीय और उनमें भी यदि कोई राष्ट्रवादी
व्यक्ति यह बात बोलेगा तो केजरीवाल,कांग्रेस,कम्यूनिस्ट और तमाम सेक्यूलर लोग जमकर हो हल्ला मचाएंगे।

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