November 14, 2024

भारत ही है आतंकवाद का असली पोषक( Originally India is a Big supporter of terrorism)

(आतंकवाद से निपटने में भारत का दोहरा रवैया है समस्या की जड)

– तुषार कोठारी

शीर्षक पढ कर चौंकिए मत। तथ्यों का निरपेक्ष भाव से आकलन करेंगे तो स्पष्ट हो जाएगा कि आतंकवाद को समाप्त करने के मामले में भारत की दोहरी नीति ही आतंकवाद को पोषित कर रही है। पाकिस्तान में सार्क सम्मेलन से जल्दबाजी में लौट कर आए भारतीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा संसद में दिए गए बयान और तमाम राजनीतिक दलों द्वारा भारत सरकार को दिए गए समर्थन के बावजूद यह सच्चाई अपनी जगह कायम है कि आतंकवाद से निपटने में भारत दोगला रवैया अख्तियार करता आया है और आतंकवाद के समाप्त न होने की यही प्रमुख वजह है। आतंकवाद की निन्दा करने के मामले में भारत निश्चित तौर पर विश्व में नम्बर एक है,लेकिन आतंकवाद को कुचलने के मामले में भारत सबसे पीछे है। इसके बावजूद भारत की सरकारें,राजनैतिक दल और यहां तक कि भारतीय मीडीया भी थोथी बयानबाजी पर खुशियां जाहिर कर आत्ममुग्धता में रहता आया है। वर्तमान घटनाक्रम भी यही दर्शाता है।
आतंकवाद पर भारतीय नीति का विश्लेषण,पाकिस्तान में हुए सार्क सम्मेलन के दौरान भारतीय गृहमंत्री के भाषण से भी बडी आसानी से किया जा सकता है। हांलाकि संसद में देश की तमाम राजनैतिक पार्टियों ने अभूतपूर्व एकता का परिचय देते हुए पाकिस्तान की निन्दा भी की और पाकिस्तान को जमकर भलाबुरा भी कहा। इतना ही नहीं देश के लगभग सभी मीडीया संस्थानों ने सार्क सम्मेलन में राजनाथ के भाषण की तारीफों के पुल बांध दिए। इस बात पर खुब पीठ ठोंकी गई,कि गृहमंत्री ने पाकिस्तान की धरती पर जाकर पाकिस्तान को लताडा।
लेकिन वास्तविक विश्लेषण कुछ इस तरीके से किया जा सकता है। भारतीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सार्क सम्मेलन के भाषण में किसी देश का नाम नहीं लिया। उन्होने नाम लिए बगैर इशारों इशारों में पाकिस्तान को लताडा। उन्होने कहा कि जो कोई व्यक्ति,संस्था या देश आतंकवाद का समर्थन करता है,उसके विरुध्द कार्यवाही की जाना चाहिए। उन्होने यह भी कहा कि सिर्फ निन्दा करने से आतंकवाद का सफाया नहीं होगा।
अब देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह, 56 इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और तमाम नीति निर्धारकों से पूछा जाए कि आखिर भारत आतंकवाद को निपटाने के मामले में खुद क्या कर रहा है। भारत के गृहमंत्री ने सार्क में आतंकवाद की जबानी निन्दा ही तो की। भारत की संसद में जब गृहमंत्री खुले तौर पर पाकिस्तान को आतंकवाद का पोषक बताते है,तो सार्क सम्मेलन में पाकिस्तान का नाम क्यों नहीं ले पाते हैं? यही नहीं,जब आप आतंकवाद का समर्थन करने वाले देश के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग करते हैं तो वह किससे करते है? स्वयं भारत ने इस सम्बन्ध में अब तक पाकिस्तान के खिलाफ क्या कार्यवाही की है? भारत तो पाकिस्तान से राजनयिक सम्बन्ध कायम रखता है। अपना राजूदत वहां रखता है। पाकिस्तान का राजदूत भारत में रहता है,और बेखौफ काश्मीर के अलगाववादियों को पार्टियां देता है। क्या इसी को आंतकवाद के खिलाफ कडी कार्यवाही कहते है? खुद आतंकवाद के पोषक देश से राजनयिक सम्बन्ध रखते है और सार्क के भूटान और नेपाल जैसे छोटे छोटे देशों के बीच आतंकवाद को पोषण करने वाले देश के खिलाफ कार्यवाही करने की नसीहतें देते हैं। ऐसे में आतंकवाद क्यों नहीं पनपेगा?
आतंकवाद से निपटने के मामले में देश की ढुलमुल नीति पर भी एक नजर डालिए। 19 फरवरी 1999 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और एनडीए सरकार को अचानक अपने पडोसी देश पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने की सुझी और वे सदा-ए-सरहद नामक बस में सवार हो कर पाकिस्तान जा पंहुचे। देश की तमाम मीडीया ने इसे भारत पाक सम्बन्धों में एक नए युग की शुरुआत बताया। देश की जनता को भी लगा कि अब शायद आतंकवाद समाप्त हो जाएगा और भारत व पाकिस्तान अच्छे दोस्त बन जाएंगे। इस घटना को दो महीने भी नहीं गुजरे थे कि मई 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कारगिल की चौकियों पर कब्जा कर लिया। कारिगल युध्द हुआ और भारतीयों ने जमकर जीत का जश्न मनाया। लेकिन जश्न मनाते भारतीयों ने इस पूरे घटनाक्रम का ठीक से विश्लेषण ही नहीं किया। कारगिल के इस युध्द में भारत के 527 से ज्यादा वीर सैनिकों ने अपने प्राण गंवाएं जबकि 1363 से अधिक घायल हुए। जिनमें से कई स्थायी रुप से अपंग हो गए। इसके विपरित पाकिस्तान के मात्र 357 से 453 सैनिक मारे गए,जबकि केवल 665 घायल हुए। हमारी सरकार ने कारगिल युध्द की शुरुआत में कहा था कि घुसपैठियों को भागने का रास्ता नहीं दिया जाएगा,लेकिन बाद में अन्तर्राष्ट्रिय दबावों के चलते अघोषित युध्द विराम हुआ,जिसमें घुसपैठिये,हमारी चौकियां खाली करके चले गए।
पाकिस्तान का यही अपराध अक्षम्य अपराध था और भारत की नीति यदि सख्त होती,तो कारगिल दुस्साहस के बाद भारत ने पाकिस्तान ने हर तरह के सम्बन्ध समाप्त कर लिए होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दो साल भी नहीं गुजरे थे कि फिर से भारत,पाकिस्तान से वार्ता के लिए तैयार हो गया। वार्ताएं होने लगी। भारत-पाक वार्ताओं में मीडीया में खबरें आने लगी कि अब भारत पाक सम्बन्ध सुधरेंगे। सम्बन्ध सुधरते इससे पहले ही,13 दिसम्बर 2001 को भारतीय संसद पर पाकिस्तानी आतंकियों ने हमला कर दिया। यह घटना तो और भी ज्यादा गंभीर थी। भारत सरकार ने तमाम फौज को सीमा पर तैनात कर दिया। देश की जनता को लगा था कि शायद अब आर पार की लडाई होगी और समस्या पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। लेकिन सीमा पर लगाई गई सेना को बिना कुछ किए पीछे हटा लिया गया। भारत की हास्यास्पद स्थिति देखिए,कि उस समय भारत के उपप्रधान मंत्री लालकृष्ण आडवाणी अमेरिका से यह मांग कर रहे थे कि पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित किया जाए,लेकिन भारत स्वयं ऐसा करने को तैयार नहीं था। जबकि सही नीति यह होती है कि जिसे आप चोर कह रहे है,पहले आप स्वयं उसके खिलाफ कार्यवाही करें,तब दूसरों से ऐसी अपेक्षा करें। लेकिन भारत के नीति निर्धारक शायद विश्व समुदाय को मूर्ख समझते है। आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए दुनियाभर के देशों से भीख मांगते रहते है,लेकिन स्वयं कोई कार्यवाही करने को राजी नहीं होते। संसद हमले को कुछ ही समय गुजरा था कि फिर से भारत पाकिस्तान के साथ वार्ता करने के तैयार हो गया।
2001 से 2016 आ गया। सौलह साल गुजर गए। इन सौलह सालों में पठानकोट जैसे दर्जनों घटनाक्रम हो गए। हर आतंकवादी हमले के बाद भारत पाकिस्तान को कोसता है,दुनिया के देशों से कहता है कि पाकिस्तान के खिलाफ कडी कार्यवाही कीजिए,लेकिन स्वयं कडी कार्यवाही के नाम पर सम्बन्ध सुधारने की मशक्कत करता है। इसे भारतीय नीति का दोगलापन कहा जाएगा या और कुछ? पठानकोट हमले के पहले मोदी जी नवाज शरीफ के घर जन्मदिन मनाने अचानक पाकिस्तान जा पंहुचे थे। उस समय भी मीडीया ने तारीफो के पुल बांधे थे। इसके बाद पठानकोट हमला हो गया। पठानकोट हमले के बाद सम्बन्ध सुधारने के चक्कर में पाकिस्तानी अधिकारियों और आईएसआई को पठानकोट के दौरे की इजाजत दे दी गई। भारत इस खुशफहमी में था कि इस बहाने भारतीय जांच एजेंसियों को भी पाकिस्तान जाने का मौका मिल जाएगा। लेकिन जैसे ही पाकिस्तानी अधिकारी पठानकोट का दौरा पूरा कर रवाना हुए पाकिस्तान ने साफ कर दिया कि भारतीय एजेंसियों को अनुमति नहीं दी जाएगी।
बहरहाल,जम्मू काश्मीर ने पिछले एक महीने से जारी अशांति के घटनाक्रम में भारतीय पक्ष सैकडों बार पाकिस्तान को कोस चुका है,लेकिन अब तक भारत सरकार वर्ष 2001 और 2002 में की गई मांग को भुला चुकी है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है। भारत अपनी ओर से ऐसी कोई पहल करने की तैयारी में नहीं दिखता। भारत के किसी भी रक्षा विशेषज्ञ का मत पूछिए। वे सभी यही कहते है कि पाकिस्तान के खिलाफ कडी कार्यवाही की पहल आखिरकार भारत को ही करना होगी। लेकिन विदेश मंत्रालय में काबिज अफसरों और भारत सरकार के नेताओं को नीति बनाने के दौरान पता नहीं कौनसा वायरस पकड लेता है कि कडी कार्यवाही की बजाय उन्हे थोडे थोडे दिनों बाद सम्बन्ध सुधारने की याद आने लगती है। सार्क सम्मेलन में पंहुचे भारतीय गृहमंत्री और भारत सरकार को बांग्लादेश से प्रेरणा लेना चाहिए,जिन्होने पाकिस्तान से खराब सम्बन्धों के चलते सार्क सम्मेलन में मंत्रियों को भेजने से साफ इंकार कर दिया। अच्छा तो यह होता कि सार्क का अविवादित नेता भारत,पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करते हुए सार्क से बाहर का रास्ता दिखाता और तब अन्तर्राष्ट्रिय समुदाय से पाकिस्तान के खिलाफ कडी कार्यवाही की मांग करता। यदि भारत ने थोथी बयानबाजी के बजाय खुद कडी कार्यवाही की होती,तो दुनियाभर को आतंक का निर्यात कर रहे पाकिस्तान की समस्या बहुत पहले ही समाप्त हो गई होती।

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