पीढियों का अन्तर
(व्यंग्य-डा.डीएन पचौरी)
आज सुबह झम्मनलाल जब चाय की दुकान पर मिले तो उनका मूड बहुत उखडा हुआ था। पूछते ही फट पडे। क्या बेहूदगी है? आजकल के फिल्म संगीत को क्या हो गया है। क्या वाहियात गाने आने लगे है। न इनमें ढंग की शब्द अदायगी है,न संगीत में मिठास। ऐसा लगता है जैसे कि फीका रसगुल्ला मुंह में रख लिया हो। अजी सबसे बडी बात तो ये है कि चरित्रहीनता बढती जा रही है। गाने इतने फूहड है कि पूछो मत।
इतने में चाय वाले की दुकान पर कांटा लगा,तेरे बंगले के पीछे,बेरी के नीचे कांटा लगा वाला गाना बजने लगा। मैने कहा लीजिए झम्मनलाल जी आपके जमाने का चरित्रवान गाना आ गया। क्या चरित्र है? हीरोइन चप्पल उतारकर दबे पांव बंगले के पीछे से हीरो के यहां प्रवेश कर रही है। यदि वो चरित्रवान होती तो धडधडाती हुई बंगले के सामने के मुख्य दरवाजे से प्रवेश करती,पीछे की दीवार कूदकर अन्दर जाने की क्या आवश्यकता है? कांटा तो लगेगा ही। झम्मनलाल जी कहां हार मानने वाले थे। बोले कि हो सकता है उस समय एकाध गाना ऐसा हो। आज तो अधिकतर गाने ऐसे है कि बेचारी शीला,मुन्नी बदनाम हुई जा रही है। गाने में तुकबन्दी के अलावा कुछ नहीं होता और तुकबन्दी ऐसी कि उसका कोई अर्थ नहीं निकलता। गानों का फिल्म की कहानी से कोई सम्बन्ध नहीं रहता है। किसी भी गाने को किसी भी फिल्म में रख सकते हो। झम्मनलाल जी इतना ही कह पाए थे कि झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में बजने लगा। मैने कहा झम्मनलाल जी ये लो एक और चरित्रवान गाना। भरे बाजार में हीरोइन का या लडकी का झुमका गिरा है और लडका प_ा गली में खडा हो कर नैन मटक्का कर रहा है। लडकी छत पर खडी है और लडका उससे छल्ला या अंगूठी की निशानी मांग रहा है और झुमका पहनाने के लिए छत पर जाने को भी तैयार है। इन बातों में जो तकरार हुई तो झुमका बीच बाजार गिर पडा,क्या चरित्र है?
झम्मनलाल थोडा सा झेंपे पर फिर बोल पडे-पुराने गानों से आज के गानों की तुलना मत करो। आजकल के कुछ गाने तो ऐसे है कि पता ही नहीं चलता कि ये गाना है कि दो जनों के बीच बातचीत हो रही है। आती क्या खण्डाला,गाने के बारे में क्या ख्याल है? मैने कहा कि आपके जमाने का अच्छा तो हम चलते है,फिर कब मिलोगे,भी तो ऐसा ही था। झम्मनलाल जी ने फोकट की चाय का एक लम्बा घूंट लेते हुए फरमाया कि इस गाने की तुलना खण्डाला वाले गाने से मत करो। इस गाने की मिठास,लय और संगीत बुहत जानदार है। कुछ भी कहलो हमारे जमाने के गानों का कोई जवाब नहीं है। आज भी कहीं शादी हो,समारोह हो,संगीत सम्मेलन हो,गाना हो बजाना हो,हर कहीं उसी जमाने के गाने ज्यादा चलते है। सबसे ज्यादा सीडी डीवीडी हमारे जमाने के गानों की बिकती है। सन पचास से पिचहत्तर का काल फिल्म संगीत का स्वर्णकाल था।
अधिक बहस न करते हुए मैने उन्हे समझाने की निरर्थक चेष्टा की कि झम्मनलाल जी ये पीढियों का अन्तर है। आजकल की नई पीढी को तेज चलताऊ तथा पश्चिमी संगीत पर आधारित गाने ही पसन्द है। जैसे हमारी पीढी को के एल सहगल सी.एच.आत्मा,पंकज मलिक और अमीरबाई कर्नाटकी के गाए गाने अच्छे नहीं लगते जो कि शुध्द शाीय संगीत और पक्के रागों पर आधारित है,उसी प्रकार आजकल की नवजवान पीढी को पुराने गाने अच्छे नहीं लगते।
मै इतना ही कह पाया था कि फिर गाना बदला और गोली मार भेजे में बजने लगा। झम्मनलाल जी ने मेरी ओर व्यंग्य भरी दृष्टि से देखा तो मैने इस गाने पर नजरे झुका ली और आगे बहस करना उचित नहीं समझा। झम्मनलाल जी फोकट के नाश्ते और चाय की तलाश में दूसरी ओर चल दिए।