अब बदलेगी रतलाम की राजनीति
कांतिलाल भूरिया की हार बदलेगी कई नेताओं का भाग्य
रतलाम,16 मई (इ खबरटुडे)। रतलाम झाबुआ संसदीय सीट पर कांतिलाल भूरिया की हार के बाद अब रतलाम की राजनीति में बदलाव आना तय है। कांग्रेस की पूरी राजनीति अब तक कांतिलाल भूरिया के इर्द गिर्द घूमती थी,लेकिन कांतिलाल की हार के बाद अब रतलाम की राजनीति में उनका दबदबा कम होना तय है और ऐसे में कांतिलाल कीे नजदीकी के आधार पर नेता बने कई लोगों का भाग्य बदल सकती है।
पिछले करीब डेढ दशक से रतलाम में कांग्रेस की राजनीति सिर्फ और सिर्फ कांतिलाल भूरिया की मर्जी से चलती थी। संगठन से लेकर चुनाव के टिकट तय करने तक हर जगह सिर्फ कांतिलाल भूरिया की मर्जी चला करती थी। इसका नतीजा यह था कि कांग्रेस में राजनीति करने का इच्छुक हर व्यक्ति किसी न किसी तरह कांतिलाल भूरिया की नजरों में चढना चाहता था। पिछले नगरीय निकाय और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के टिकट कांतिलाल भूरिया की मर्जी से ही दिए गए थे। हांलाकि पिछले सभी चुनावों में कांग्रेस की लगातार हार होती रही।
कांग्रेस संगठन के तमाम पदों की नियुक्तियां भी कांतिलाल की मर्जी से ही होती रही। शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर डॉ.राजेश शर्मा की नियुक्ति सिर्फ इसीलिए हुई थी कि वे कांतिलाल भूरिया के नजदीकी थे। विधानसभा चुनाव में डॉ.शर्मा ने टिकट पाने की जोरदार कोशिश की थी। उनके आका कांतिलाल ने न सिर्फ पूरी कोशिश भी की थी,बल्कि टिकट की घोषणा भी हो चुकी थी। उस समय श्री भूरिया सांसद होने के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी थे। कांग्रेस का टिकट घोषित हो जाने के बाद आखरी समय पर राहूल गांधी के हस्तक्षेप के कारण डॉ.शर्मा का टिकट बदलकर अदिती दवेसर को दे दिया गया। इस स्थिति में कांतिलाल भूरिया ने डॉ.शर्मा की पदोन्नति कर उन्हे कांग्रेस का प्रदेश सचिव बनवा दिया था। इसी तरह नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष पद पर विमल छिपानी की नियुक्ति भी कांतिलाल भूरिया की इच्छा से ही हुई थी। शहर में भूरिया गुट के अलावा अन्य किसी गुट का अस्तित्व बाकी नहीं रह गया था और कांतिलाल भूरिया की मर्जी का विरोध करना कांग्रेस विरोध करने के समान माना जाता था।
लोकसभा चुनाव के नतीजे इस परिस्थिति को बदलने वाले साबित हो सकते है। रतलाम शहर में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव से भी अधिक करारी हार झेलना पडी है। यह देखना मजेदार रहेगा कि इस करारी हार की जिम्मेदारी किसके सिर आएगी। वास्तव में तो हार की सीधी जिम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष की होती है। इसके साथ ही रतलाम से प्रदेश कांग्रेस संगठन के जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं पर भी इस हार की नैतिक जिम्मेदारी है। एक प्रदेश सचिव खुर्शीद अनवर तो सक्रीय राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर चुके है। अब यदि कांग्रेस के नेता हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते है तो उन्हे अपने पद से फौरन इस्तीफा देना होगा और ऐसे में इस पद पर किसी नए नेता की ताजपोशी होगी। नया कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की प्रक्रिया में निश्चित तौर पर कांतिलाल भूरिया का रोल काफी कमजोर होगा। इसी तरह कांग्रेस के अन्य नेताओं की हैसियत तय करने में भी अब कांतिलाल भूरिया का रोल उतना महत्वपूर्ण नहीं रह पाएगा जितना अब तक हुआ करता था।
लोकसभा चुनाव निपटने के बाद अब कुछ ही महीनों बाद नगरनिगम चुनाव होना है। नगर निगम चुनाव में पार्षदों और महापौर का टिकट तय करने में भी अब कांतिलाल भूरिया की हैसियत कमजोर होगी। ऐसी स्थिति में यह देखना बेहद रोचक होगा कि कांग्रेस की राजनीति का नया सत्ता केन्द्र किसके हाथ में आता है।